सोमवार, 15 जुलाई 2019

पहाड़ी रास्तों के लिए सड़कें चौड़ी करना पहाड़ों के लिए नहीं है अच्छा

देहरादून पहाड़ी इलाकों के शहरों में पर्यटकों की बढ़ती आमद और तीर्थयात्राओं के कारण सड़कों पर भीड़ बढ़ रही है। पहाड़ियों पर जल्दी और आसानी से पहुंचने की इच्छा की कीमत बड़ी हो रही है। नाजुक पहाड़ों के बीच से गुजरने वाली सड़कों का व्यापक विस्तार, पारिस्थितिकी को अपूरणीय क्षति, और भूस्खलन के खतरे को बढ़ा रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो पारिस्थितिकी की चिंता किए बिना निर्माण करना हिमालय में बड़ी-आपदा ला सकता है। उदाहरण के लिए शिमला, सोलन, मनाली जैसे इलाकों वाला हिमाचल प्रदेश कई लोगों के लिए पसंदीदा स्थल है। बीजेपी सरकार ने 2017 में घोषणा की थी कि यहां पर 3,878 किमी की एक व्यापक सड़क का जाल 65,000 करोड़ रुपये से फैलाएगी। इसमें फोरलेन के राजमार्ग शामिल हैं। लेकिन हिमालयी इलाका जटिल है और ऐसा बहुत कम ही होता है जब प्रकृति अपने रोष को उजागर करे। सितंबर 2018 में परवाणू और सोलन के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग में बीस किमी चौड़ी एक सड़क का निर्माण किया गया था लेकिन लगातार भूस्खलन से सब खराब हो गया। मिट्टी ढीली होने से होता है भूस्खलन विशेषज्ञों ने बताया कि सड़कों के निर्माण या चौड़ीकरण के दौरान चट्टानों को डायनामाइड से उड़ाया जाता है। इस प्रक्रिया से पहाड़ों में अस्थिरता पैदा होती है और वहां लगी वनस्पति हट जाती है। नतीजा यह होता है कि वहां की मिट्टी ढीली हो जाती है और जिससे लगातार भूस्खलन होता है। कमजोर बिंदुओं पर नहीं दिया जाता ध्यान पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के प्रफेसर करनजोत कौर बराड़ ने कहा कि एक परियोजना शुरू करने से पहले कमजोर बिंदुओं का पता लगाना जरूरी होता है। हिमाचल में कई सड़कें पहले से ही कमजोर बिंदुओं पर दबाव डालते हुए गलती से बंद हो जाती हैं। अस्थिर खड़ी ढलान, कमजोर चट्टान संरचना और तीव्र बारिश राज्य में ढलान की विफलता के मुख्य कारण हैं। ऑल वेदर रोड पर ट्राइब्यूनल ने भी लगाई है रोक पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में पहाड़ी क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए 889-किलोमीटर लंबी ऑल-वेदर सड़क बनाई जा रही है। स्थानीय लोगों भी इसे लेकर चितिंत हैं। पर्यावरणविद पीएम नरेंद्र मोदी की इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। सड़क निर्माण के लिए नदियों में पत्थर डालने और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का मामला नैशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल तक भी पहुंच गया है। सड़कें चौड़ी करने के चक्कर में कई गुना बढञ गए डेंजर जोन उत्तरकाशी के एक पर्यावरणविद् सुरेश भाई ने कहा कि वर्तमान में, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग जैसे हिमालयी जिलों में सड़कें 5 मीटर तक चौड़ी हैं। कुछ क्षेत्रों में जहां विशेष रूप से जरूरत होती है, सड़कों को दस मीटर तक बढ़ाया जा सकता है। 22 मीटर चौड़ी सड़क बनाने के लिए पेड़ों को गिराया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि पहले गढ़वाल की पहाड़ियों में 36 भूस्खलन वाले क्षेत्र थे। ऑल वेदर रोड प्रॉजेक्ट शुरू होने के बाद अब लगभग 120 डेंजर जोन हो गए हैं। मंत्री का मानना है हो रहा विकास उत्तराखंड के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि 11,700 करोड़ रुपये की ऑल वेदर सड़क परियोजना राज्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी। उन्होंने कहा कि यात्रा का समय कम होने के अलावा चौड़ी और चिकनी सड़क पहाड़ियों में सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाएगी। उन्होंने कहा कि वाहनों का पहाड़ियों में गिरना एक आम बात हो गई थी। सकरी सड़कें अकसर इसका कारण रही हैं। मंत्री ने कहा कि यात्रा आसान होने पर लोग यहां पर प्रॉसेस यूनिट्स और दूसरे उद्योग खोलने के लिए प्रोत्साहित होंगे, जिससे पहाड़ी इलाकों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। हिमालयन स्टडीज के वाडिया इंस्टिट्यूट के एक भूवैज्ञानिक प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा कि पहाड़ों में फोर-लेन सड़कों की क्या जरूरत है? इन पर किसी को भी 80 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने की जरूरत नहीं है। पहाड़ों में जनसंख्या का घनत्व बहुत कम है और हर दिन घट रहा है। उन्होंने कहा कि ऑल वेदर सड़क चौड़ीकरण परियोजना शुरू होने से पहले कोई अकैडमिक सर्वेक्षण नहीं किया गया। विशेषज्ञों ने कहा कि सड़कों के किनारे घास लगाने से मिट्टी के कटाव पर अंकुश लग सकता है।


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