बुधवार, 17 जुलाई 2019

औली की हाई प्रोफाइल शादी से पर्यावरण को हुए नुकसान की प्रदूषण बोर्ड दुबारा जांच करे: हाई कोर्ट

नैनीताल उत्तराखंड ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पूछा है कि औली की हाई प्रोफाइल शादी के बाद पैदा हुए 320 टन कूड़े का निस्तारण कैसे किया गया। क्या जैविक और अजैविक कूड़ा अलग किया गया या नहीं? धौली गंगा सहित उसके आस पास के जल स्रोतों को कितना नुकसान इस कारण हुआ? हाई कोर्ट ने प्रदूषण बोर्ड को यह भी आदेश दिए हैं कि वह दोबारा से जांच करे कि वहां को कितना नुकसान हुआ है इस अध्ययन के लिए जितना भी पैसा लगेगा, वह उसका बिल जिला अधिकारी चमोली को दें। शाही शादी के मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने इस मामले में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिलाधिकारी चमोली और सरकार से दस दिन के भीतर विस्तृत जवाब पेश करने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन तथा न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में काशीपुर के रक्षित जोशी की जनहित या याचिका पर सुनवाई के दौरान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट पेश की और बोर्ड मेंबर सेक्रेट्री कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट ने प्रदूषण बोर्ड द्वारा दायर शपथपत्र से संतुष्‍ट न होकर उनसे दोबारा विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है। बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि शादी होने से पहले और उसके बाद औली में दो सौ मजदूर वहां थे, जिनके लिए कोई टॉइलट तथा अन्य की व्यवस्था नहीं थी। शादी के दौरान वहां बारिश हुई और इनके द्वारा की गई गंदगी सीधे धौली गंगा में बहकर चली गई। अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि शादी में पॉलिथीन से निर्मित वस्तुओं का प्रयोग किया गया। सफाई आदि के लिए जेसीबी मशीनों का प्रयोग किया गया। जनहित याचिका के याचिकर्ता ने इस प्रकरण की जांच के लिए आज एफआरआई, निम, वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियॉलजी तथा जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया को पक्षकार बनाने की मांग की, जिससे स्पष्ट पता चल सके कि औली बुग्याल है या नहीं? शादी से वहां के पर्यावरण को आखिर कुल कितना नुकसान हुआ। इसकी सही जनकारी कोर्ट को मिले। कोर्ट ने इसे स्वीकार कर इनको पक्षकार बनाया है। काशीपुर निवासी अधिवक्ता रक्षित जोशी ने हाई कोर्ट में इस मामले दायर जनहित याचिका में कहा था कि उत्तराखंड के औली बुग्याल में उद्योगपति के बेटों की शादी 18 से 22 जून तक होने जा रही है, जिसमें मेहमानों को लाने ले जाने के लिए करीब 200 हेलिकॉप्टरों की व्यवस्था की गई। इन हेलिकॉप्टरों से पर्यावरण को खतरा तो होगा ही साथ ही बुग्यालों और क्षेत्र में रहने वाले जंगली जानवरों को भी खतरा होगा। याचिकाकर्ता का कहना था कि राज्य सरकार हाई कोर्ट की खंडपीठ द्वारा दिए गए पूर्व के आदेश की अनदेखी कर रही है, जिसमें कोर्ट ने पहाड़ी क्षेत्रों में बुग्याल आदि में किसी भी प्रकार की भी गतिविधि पर प्रतिबंध लगाया था।


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