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देहरादून मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा है कि 28 जुलाई को होने वाले में सभी हिमालयी राज्यों के प्रतिनिधि अपने-अपने अनुभवों को साझा करेंगे। किस प्रकार हिमालयी राज्य न्यू इंडिया में योगदान दे सकते हैं, इस पर भी विचार विमर्श होगा। मीडिया से अनौपचारिक बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी हिमालयी राज्यों की परिस्थितियां कमोबेश एक जैसी हैं। पर्यावरण को संरक्षित रखते हुए किस प्रकार पर्वतीय क्षेत्रों का विकास किया जा सकता है, इस पर मंथन किया जाएगा और कॉन्क्लेव में प्राप्त निष्कर्षों का ड्राफ्ट नीति आयोग को सौंपा जाएगा। उधर, 28 जुलाई को मसूरी में आयोजित होने वाले हिमालयी राज्यों के सम्मेलन में उत्तराखंड के जनमानस की आवाज पहुंचाने के लिए कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे किशोर उपाध्याय के नेतृत्व में वनाधिकार आंदोलन के 15 सदस्य प्रतिनिधि मंडल ने सचिव तथा सह-समन्वयक हिमालयी राज्य सम्मेलन अमित नेगी से भेंट कर 11 सूत्रीय ज्ञापन दिया। किशोर उपाध्याय ने कहा कि उत्तराखंड एक पहाड़ी तथा वन प्रदेश है, पहाड़ पर विषम परिस्थितियों में लोग अपना जीवनयापन करते हैं। अब उत्तराखंड की समस्याएं इतनी विकट हो चली है कि पहाड़ से पलायन पूर्व से भी अधिक होने लगा है, जिससे गांव के गांव खाली हो रहे हैं। उत्तराखंड और उत्तराखंडियत को बचाने के लिए उत्तराखंड के लोगों के 'पारंपरिक और प्रथागत' अधिकार वापस दिए जाने चाहिए, जिसके लिए उत्तराखंड राज्य को वन प्रदेश घोषित किया जाए और राज्य के नागरिकों को वनवासी/जनजाति का दर्जा दे कर केंद्र की सेवाओं में आरक्षण दिया जाना दिया चाहिए। वन अधिकार अधिनियम 2006 को पत्र और भावना में लागू किया जाना चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों पर हमारे प्रथागत और पारंपरिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की जाय, और उनका सम्मान किया जाए तथा वन, वन्य प्राणियों-वनस्पतियों और स्वच्छ जल संसाधनों को बचाने के एवज में वनक्षेत्र के निवासियों को प्रत्यक्ष प्रोत्साहन बोनस दिया जाए। उपाध्याय ने कहा कि हम मांग करते हैं कि यह प्रत्यक्ष प्रोत्साहन बोनस एलपीजी-गैस सिलेंडर (प्रति माह एक/ परिवार), मुफ्त पानी (मानक- अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार), बिजली (प्रति माह 100 इकाई प्रति परिवार प्रति माह), भवन निर्माण सामग्री (प्रत्येक 10 वर्ष में एक बार, प्रति परिवार) के रूप में दिया जाए। लघुवनोपज को इकठ्ठा करने और खनन कार्यों (मिट्टी, पत्थर, रेत, बजरी और अन्य खनिजों) में ब्लॉक स्तर पर रहने वाले समुदाय को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। राष्ट्र को ताजे पानी और स्वच्छ हवा प्रदान करने के ऐवज में, हमारे राज्य को (पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र में) स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क के निर्माण के लिए, दस हज़ार करोड़ रुपये ग्रीन बोनस के रूप में देने की मांग करते हैं। पर्वतीय और प्राकृतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में, किसानों को, पारिस्थितिक सामाजिक सेवा (इकोलॉजिकल सोशल सर्विस) के एवज में 5000 प्रति बीघा (रु।250 प्रति नाली/225 वर्ग मीटर) रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जानी चहिए। किसान को उनकी निजी भूमि में अपनी पसंद के पेड़ लगाने की अनुमति और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, उन्हें इन पेड़ों से सभी प्रकार की उपज लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। किसान को अपने कृषि फार्म या बागवानी फार्म में उगाए गए पेड़ों (किसी भी प्रकृति के) को काटने/उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए। किशोर उपाध्याय ने केंद्र सरकार में हिमालियी राज्यों के लिए एक अलग मंत्रालय बनाने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्यों के सतत विकास के लिए, प्राथमिकता के आधार पर नीतियों और कार्यक्रमो के लिए पहल करनी चाहिए। एक अलग मंत्रालय का गठन हिमालय के व्यापक और सतत विकास के लिए शुरुआती बिंदु होगा जो कि बाद में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के लिए विश्व को दिया जाने वाला जवाब बन जाएगा। वन विभागों को मानव-पशु संघर्ष के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। मानव-पशु संघर्ष के पीड़ितों में से प्रत्येक को सम्मानजनक मुआवजा दिया जाना चाहिए। मृतक के परिवार के लिए 25 लाख रुपये तथा परिवार के एक सदस्य के लिए सरकारी नौकरी की मांग करते हैं, गंभीर चोट के लिए 10 लाख के साथ पूरे इलाज का खर्चा, तथा आंशिक घायल के लिए 2,50,000 रुपये तथा इलाज का पूरा खर्चा की मांग करते हैं। उन्होंने कहा कि हिमालय को बचाने के लिए वनाधिकार आंदोलन की विभिन मांगों को लागू किया जाना चाहिए।
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