![](https://navbharattimes.indiatimes.com/photo/88563264/photo-88563264.jpg)
देहरादून उत्तराखंड में कांग्रेस के भीतर तलवारें खिंची हुई हैं। हरीश रावत खुद को सीएम उम्मीदवार के रूप में देखना चाहते हैं लेकिन उनके खिलाफ तगड़ी गोलबंदी है। प्रीतम सिंह कांग्रेस के अंदर हरीश रावत विरोधी खेमे का प्रमुख चेहरा माने जाते हैं। प्रीतम सिंह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। कहा जाता है कि गुटबाजी की वजह से ही पार्टी आलाकमान राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की स्थिति में नहीं है। एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने प्रीतम सिंह से राज्य के चुनावी परिदृश्य, हरीश रावत से उनके रिश्ते और गुटबाजी से पार्टी के चुनावी नतीजों पर पड़ने वाले असर को लेकर बात की। बातचीत के मुख्य अंश : उत्तराखंड में बीजेपी का सीएम का चेहरा तय है, आम आदमी पार्टी का तय है लेकिन कांग्रेस चेहरा तय करने से बच रही है, क्यों? हमारे यहां ऐसी कोई परंपरा नहीं रही है। हम सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ते हैं। बहुमत मिलने के बाद सीएम चुनने की एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया होती है विधानमंडल दल के जरिए, उसका पालन करते हैं। इस बार भी ऐसा ही होगा। कांग्रेस अगर मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं कर रही है तो यह कोई अप्रत्याशित बात नहीं है। यही वजह है या असल बात यह है कि हरीश रावत को मुख्यमंत्री नहीं बनने देना है? कौन मुख्यमंत्री बनेगा और कौन नहीं, यह तय करना मेरे अधिकार में नहीं है। मैं तो पार्टी का एक छोटा कार्यकर्ता हूं। पार्टी मुझे जो जिम्मेदारी देती है, मैं उसका पालन करता हूं। पार्टी की जो स्थापित परंपरा है, खासतौर पर उत्तराखंड को लेकर, वह मैंने बताया कि पहले से किसी को मुख्यमंत्री घोषित कर चुनाव नहीं लड़ा जाता है। कुछ वक्त पहले हमने हरीश रावत का एक बयान पढ़ा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस सीएम का चेहरा घोषित कर चुनाव के मैदान में जाएगी तो उसे फायदा होगा, तब चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर शिफ्ट नहीं होगा? पहली बात तो यह कि मुझे उस बयान की कोई जानकारी नहीं। कब दिया, किस संदर्भ में दिया, उसका भी मुझे कोई ज्ञान नहीं। किसी अन्य के बयान पर मुझे प्रतिक्रिया व्यक्त करने का अधिकार भी नहीं है। दूसरी बात यह है कि अहम यह नहीं कि कौन क्या चाहता है। अहम यह है कि आलाकमान क्या चाहता है? आलाकमान का फैसला अगर अंतिम फैसला न हो तो कोई फैसला ही न हो सकेगा, क्योंकि सबके भिन्न-भिन्न विचार हो सकते हैं। मेरा तो मानना है कि चेहरा घोषित कर चुनाव लड़ा जाए या बिना चेहरे के लड़ा जाए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हमें चुनाव कांग्रेस की नीतियों पर और बीजेपी के कुशासन के खिलाफ लड़ना है। वैसे हरीश रावत के साथ आपके रिश्ते कैसे हैं? वह हमारे वरिष्ठ हैं, पार्टी में वह हमारे नेता हैं। कहा तो यह जाता है कि आपके और उनके बीच 36 का रिश्ता है? ऐसा नहीं है। वैसे व्यक्तिगत स्तर पर तो कोई भी किसी को पसंद-नापसंद कर सकता है। हर किसी की अपनी चॉइस होती है। इसके लिए कोई किसी को बाध्य नहीं कर सकता। लेकिन जब पार्टी के स्तर पर बात करते हैं तो वहां आपकी कोई चॉइस नहीं चलती है। वहां सभी लोगों को पार्टी की नीतियों और नेतृत्व के प्रति प्रतिबद्ध होना होता है। यशपाल आर्य के बीजेपी से इस्तीफा देकर कांग्रेस में आने के बाद कई और नेताओं को लेकर कहा जाता है कि वे कांग्रेस में आना चाहते हैं, लेकिन हरीश रावत ने उनकी एंट्री पर रोक लगा रखी है? हर पॉलिटिकल पार्टी में एक ऐसा दरवाजा होता है, जो कभी बंद नहीं होता। लोग उस दरवाजे से बाहर जाते भी हैं, आते भी हैं। अगर कोई कांग्रेस में आना चाह रहा होगा और कांग्रेस आलाकमान उसे लेना चाह रहा होगा तो उसे आने से कोई नहीं रोक सकता। हरक सिंह रावत कब कांग्रेस में आ रहे हैं? मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है। त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर भी कुछ चल रहा है क्या? मुझे उसकी भी जानकारी नहीं है। ऐन चुनाव के समय पर कांग्रेस में जिस तरह की गुटबाजी दिख रही है क्या पार्टी को भारी नहीं पड़ेगी? गुटबाजी कहां नहीं है? क्या बीजेपी में नहीं है? लोकतंत्र में सभी व्यक्तिगत मत अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन चुनाव पार्टियों की नीतियों पर लड़ा जाता है। मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हूं बीजेपी का प्रचार तंत्र चाहे जितना दुष्प्रचार कर ले, लेकिन सत्ता से उसका बेदखल होना तय है। वैसे उत्तराखंड का क्या चुनावी परिदृश्य आपको लग रहा है? उत्तराखंड के लोग चुनाव का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं क्योंकि अब वे बीजेपी की सत्ता से मुक्ति चाहते हैं। ऐसी गैर जिम्मेदार और असफल सरकार तो उत्तराखंड में देखी ही नहीं गई। हर मोर्चे पर फेल सरकार को उत्तराखंड के लोग हटाना चाहते हैं। पुष्कर सिंह धामी के सीएम बनने से बीजेपी के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर खत्म हो गया है, इस दावे में कितना दम है? उत्तराखंड के लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुख्यमंत्री कौन है। वह सिर्फ यह जानते हैं कि बीजेपी की सरकार है। वही बीजेपी जो 2017 के चुनाव में धोखे और झूठ के बल पर सत्ता में आई। चुनाव आने से पहले मुख्यमंत्री के चेहरे बदल कर बीजेपी आमजन की नाराजगी खत्म नहीं कर सकती है।
from Uttarakhand News in Hindi, Uttarakhand News, उत्तराखंड समाचार, उत्तराखंड खबरें| Navbharat Times https://ift.tt/3mHRMhk
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें