![](https://navbharattimes.indiatimes.com/photo/88335409/photo-88335409.jpg)
ओमप्रकाश भट्ट, देहरादून उत्तराखंड में नए जिलों के गठन का सवाल फिर से चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। अब जिले के पुनर्गठन को लेकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर लगभग सभी सियासी दल फिर से नए जिलों के गठन के वायदे करने लगे हैं। इसी सप्ताह काशीपुर में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपनी जनसभा में लोगों को आश्वस्त किया था कि AAP की सरकार के आते ही काशीपुर के लोगों को नए जिले की सौगात मिल जाएगी। नए जिलों के गठन का जो वायदा अरविंद केजरीवाल काशीपुर में कर गए हैं, उसे उत्तराखंड की राजनीति के जानकार इसे यहां सत्ता के प्रमुख दावेदार रहे, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की तर्ज पर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश मानते हैं। अरविंद केजरीवाल के इस वायदे ने चुनावी वर्ष में जिलों के पुनर्गठन के मसले को ना केवल गर्म कर दिया है अपितु अन्य प्रमुख दलों को इस दिशा में लोगों के अनुरूप रणनीति बनाने के लिए दबाव बनाने का कार्य किया है। जिलों के पुनर्गठन को लेकर यहां, राज्य बनने से पहले भी आंदोलन होते रहे हैं। जिला मुख्यालयों से कटे और दूरदराज के क्षेत्रों के लोग, नए जिलों के गठन को अपनी बुनियादी-जरूरतों और समस्याओं का हल मानते रहे हैं, जिसके चलते नए जिलों के लिए आंदोलन होते रहे हैं। राज्य बनने से पूर्व क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखंड के कई जिले उत्तर प्रदेश के बड़े जिलों में शामिल थे, जिनमें तब चमोली जिला भी एक था। लंबी दूरी, कठिन परिस्थिति बने वजह चमोली में देवाल, थराली और और उखीमठ तथा अगस्त्यमुनी विकास खंड के कई गांव लंबी दूरी और कठिन परिस्थितियों चलते जिला मुख्यालय से लगभग कटे हुए थे। लोगों को छोटे-बड़े कार्य से जिला मुख्यालय आने में एक से दो दिन का समय लगना मामूली बात थी। देवाल, थराली और नारायणबगड़ को मिला कर थराली। जबकि अगस्त्यमुनी और उखीमठ को मिलाकर रुद्रप्रयाग के रूप में नया जिला बनाने की मांग यहां नौंवे दशक से ही शुरू हो गई थी। राज्य बनने से पहले उखीमठ और अगस्त्यमुनी चमोली से अलग होकर रुद्रप्रयाग के नाम से नया जिला बना लेकिन थराली के लोगों की मांग आज भी जस की तस है। राज्य के गठन के बाद लगभग एक दर्जन से अधिक क्षेत्रों में संगठित तरीके से नए जिलों के निर्माण की मांग उठती रही। कई जगह इसके लिए संघर्ष समितियां बनी। जिनके बैनर तले लोग एकजुट हुए। नए जिलों की मांग लेकर आंदोलन का लंबा सिलसिला चला। उत्तराखंड बनने के 21 साल बाद आज भी यहां संघर्ष अनवरत जारी है। डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार, यमुनोत्री... जिलों के पुनर्गठन की इन पूरानी मांगों के साथ-साथ , रानीखेत, कोटद्वार और यमुनोत्री जैसे इलाके के लोग अभी भी जिलों के निर्माण की वर्षों पूरानी मांग के समर्थन में आंदोलित हैं। मजेदार बात यह है कि जन दबाव और जरूरत के चलते इन आंदोलनों में हर दल और हर पक्ष के लोग जुड़े हैं। दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर जो एकजुटता रही वह उपरी स्तर पर नहीं दिखी। राजनीतिक विश्लेषक और लेखक मंगला कोठियाल इसी बात को कुछ इस तरह कहते हैं कि स्थानीय स्तर पर लोगों के इस भाव को देखते हुए सत्ता की चाह रखने वाले सभी राजनैतिक दल इसको लेकर चुनावों में अपनी-अपनी रोटी सेकते तो दिखते हैं। लेकिन सत्ता मिलते ही इससे आंख मूद लेने की प्रवृत्ति से कोई अछूता नहीं रहा। हर बार चुनावों से ठीक पहले जिलों के गठन के सवाल को गर्माने की कोशिश की जाती रही है। इस बार मंगलवार को केजरीवाल के बयान के बाद नए जिलों के गठन का जिन्न फिर से बोतल से बाहर आता दिखता है। केजरीवाल ने ना केवल काशीपुर के लोगों से अपितु डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार, रुड़की और यमुनोत्री में भी नए जिलों बनाने का वायदा किया है। पूर्व जिला पंचायत सदस्य और AAP के वरिष्ट नेता एडवोकेट भवान सिंह चौहान कहते है कि आप की ओर से जो भी वायदे उत्तराखंड में किए जा रहे हैं वे तथ्यों और जरूरतों तथा व्यावहारिकता को ध्यान में रख कर किए जा रहे हैं। नए जिलों का गठन, दूरदराज के लोगों को बेहतर प्रशासन और सुविधा देने का एक माध्यम है। इसी को ध्यान में रखकर बोला जा रहा है। यह चुनावी वायदा नहीं है अपतिु राज्य के उपेक्षित इलाकों और लोगों के वुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी कदम है। 1992 से थराली जिला बनाओं आंदोलन के प्रमुख नेता और उत्तराखंड क्रांति दल के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष भूपाल सिंह गुसाई भी जिलों के पुनर्गठन के सवाल पर राजनैतिक बयानबाजी से उपर उठने की जरूरत पर जोर देते हुए कहते हैं कि उत्तराखंड प्रदेश के गठन की बुनियाद ही प्रशासनिक इकाईयों के विकेन्द्रीकरण को लेकर हुई थी। यूकेडी ने नए राज्य के लिए जो सपना देखा था। उसमें भी 21 जिलों की परिकल्पना की गई थी, वह 21 साल बाद भी पूरी नहीं हुई। उत्तराखंड में अभी 2 मंडल, 13 जिले उत्तराखंड में इस समय दो मंडल और 13 जिले मौजूद हैं। इनमें मुख्य रूप से थराली, गैरसैंण, कर्णप्रयाग, ऋषिकेश-नरेन्द्रनगर, यमुनोत्री, रुड़की, कोटद्वार, डीडीहाट, रानीखेत, रामनगर-काशीपुर समेत एक दर्जन से अधिक जगहों को जिला बनाने की मांग होती रही है। यमुनोत्री जिला बनाओ समिति से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले दो दशक से अश्वासन पर अश्वासन ही मिले हैं। धरातल पर स्थिति जस की तस बनी हुई है। बीजेपी, कांग्रेस.. सभी दल कर चुके हैं वादा हालांकि जिलों का मसला राज्य के गैर योजनागत वित्तीय भार और दलों के राजनैतिक नफा-नुकसान से भी जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि 2011 में भाजपा सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने स्वतंत्रा दिवस के मौके पर चार नए जिलों के गठन की जो घोषणा की वह धरातल पर आने से पहले ही दम तोड़ गई। निशंक की इस घोषणा को उनके बाद आए भाजपा सरकार के ही तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी ने शासनादेश जारी किया लेकिन उससे आगे नहीं बढ़ पाया। भाजपा इसके लिए कांग्रेस की सरकार पर आरोप लगाती रही है। डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार और यमुनोत्री, इन चार जिलों के गठन के निशंक के आदेश के संबंध में हुआ यह कि जिलों के क्रियान्वयन की कवायद शुरू होने से पहले ही विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस की सरकार आ गई। जिसके मुखिया विजय बहुगुणा बने, उन्होंने राज्य में अन्य स्थानों पर भी चल रहे जिलों के निर्माण की मांग को देखते हुए ने जिलों के गठन का मसला हल करने के लिए तत्कालीन राजस्व परिषद के अध्यक्ष की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय प्रशासनिक इकाईयों के पुनर्गठन के लिए आयोग का गठन का आदेश किया। इससे पूरा मामला ही ठंडे बस्ते में चला गया। नए जिलों का गठन इनकी रिपोर्ट के आधार पर करने का निर्णय लिया। हालांकि कई बार जिलों के गठन को लेकर अपनी सरकार और अपना पक्ष रख चुके हैं। हरीश रावत का कहना था कि उन्होंने जिलों के पुनर्गठन को लेकर रोड-मैप तैयार कर लिया था। इसके लिए धनराशि की भी व्यवस्था कर ली थी। वह कहते हैं कि सरकार के बदल जाने से वे अपनी इस योजना को आगे नहीं बढ़ा पाए। पिथौरागढ़ के डीडीहाट में कई दिनों से चल रहे जिला बनाओ आंदोलन, उन्हीं के हाथों स्थगित किया गया। हरीश रावत ने उस समय कहा कि आंदोलन की बजाय कांग्रेस की सरकार को आने दे। सरकार बनते ही डीडीहाट नया जिला बन जाएगा। यही बात उन्होंने दो महीने पहले रानीखेत में भी आंदोलनकारियों से कही। अब हरीश रावत का कहते हैं कि वे 11 शहरों को नए जिले के रूप में देखने की परिकल्पना पर कार्य कर रहे हैं। उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष धीरेन्द्र प्रताप ने बताया कि उनकी पार्टी सत्ता के विकेन्द्रीकरण के लिए प्रतिबद्व है और निश्चय ही आधा दर्जन नए जिले उत्तराखंड के राजनैतिक मानचित्र पर आ जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। उन्होंने बताया कि पार्टी चुनावों के लिए अपना घोषणा पत्र तैयार कर रही है, जिसमें जनता से जुड़े कई मसले रखे जा रहे हैं। भाजपा और उसकी वर्तमान सरकार की ओर से भी जिलों के पुनर्गठन के सवाल पर पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट के आने के इंतजार की बात कही जाती रही है। जबकि उनके कई विधानसभा सदस्य स्थानीय स्तर पर जिलों के पुनर्गठन के वायदे के आधार पर चुनाव में बहुमत में आए थे। विधानसभा चुनावों में पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चमोली, पौड़ी, उत्तरकाशी, टिहरी और हरिद्वार की कई ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां जिलों के पुनर्गठन को लेकर लोग आंदोलित हैं। इन सीटों पर पिछली तीन विधानसभा चुनावों में में चुनाव जीतने वाले प्रत्याशियों ने जिलों के नवनिर्माण के मुद्दे के आधार पर बढ़त हासिल की थी। आने वाले चुनावों में फिर से यही स्थिति बनती दिखाई दे रही है। इसलिए सभी दल अब इस पर आगे बढ़ते दिख रहे हैं।
from Uttarakhand News in Hindi, Uttarakhand News, उत्तराखंड समाचार, उत्तराखंड खबरें| Navbharat Times https://ift.tt/325mdH1
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें