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ओम प्रकाश भट्ट, चमोली उत्तराखंड के चारधाम को रद्द करने का विधेयक पारित होने के बाद चारधाम और उससे जुड़े 51 मन्दिरों के तीर्थपुरोहित और हक-हकूकधारियों ने राहत की सांस ली है। ढाई साल पहले उत्तराखण्ड की सरकार ने उत्तराखण्ड के बदरीनाथ-केदारनाथ और गंग्रोत्री-यमुनोत्री समेत 51 मन्दिरों की व्यवस्था के लिए विधानसभा से देवस्थानम बोर्ड अधिनियम पारित किया था, जिसमें मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में देवस्थानम बोर्ड का गठन और प्रबंधन के लिए वरिष्ठ आईएस अधिकारी को मुख्य कार्यअधिकारी नियुक्त करने के प्रावधान थे। इसके साथ पूर्व की सभी व्यवस्थाओं को इस बोर्ड के तहत रद्द कर दिया गया था, जिससे पूर्ववर्ती व्यवस्था से जुड़े पंडे-पुरोहित और तीर्थ पुरोहित नाराज थे। हालांकि राज्य सरकार ने इस बदलाव का मकसद बद्रीनाथ धाम समेत सभी तीर्थों में बेहतर व्यवस्था बनाने का दावा किया था, जिससे मंदिरों में पारदर्शी प्रशासन और तीर्थयात्रियों को के लिए सुविधाएं बढ़ाना था। जनवरी 2020 में राज्यपाल की अनुमति मिलने के बाद देवस्थानम बोर्ड वजूद में आया और गढ़वाल के आयुक्त को बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की जिम्मेदारी सौंपी गई। बोर्ड में सरकारी सदस्यों के अलावा विधायकों को प्रतिनिधित्व दिया गया। बाद में विरोध शांत करने के लिए तीर्थ-पुरोहितों को भी बोर्ड में सदस्य बनाया गया। इससे भी तीर्थ पुरोहितों का विरोध शांत नहीं हुआ। यमुनोत्री से लेकर केदारनाथ और गंग्रोत्री से लेकर बदरीनाथ तक सरकार के इस निणर्य का जबरदस्त विरोध हुआ। पण्डे-पुरोहितों और हक-हकूकधारियों ने संगठित रूप से इसका विरोध किया। न्यायालयों में बोर्ड के गठन के निर्णय के खिलाफ याचिका दाखिल की गई। तीर्थ पुरोहितों के संगठन की ओर से प्रख्यात अधिवक्ता और भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने न्यायालय में पैरवी की थी। त्रिवेन्द्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटते ही विरोध और मुखर हुआ। प्रधानमंत्री मोदी के नवम्बर माह में केदारनाथ दौरे से पूर्व तीर्थ पुरोहितों के गुस्से को शांत करने के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सुलह के लिए स्वयं ही केदारनाथ आये और नवम्बर आखरी तक इस मसले के समाधान का वादा कर तीर्थ पुरोहितों का आक्रोश शांत किया। देवस्थानम बोर्ड के गठन से पूर्व बदरीनाथ और केदारनाथ के लिए अंग्रेजों की ओर से बनाया गया श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति एक्ट लागु था जबकि गंग्रोत्री और यमुनोत्री के लिए स्थानीय तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों की कमेठी के जरिये व्यवस्था की जाती थी। बोर्ड के विधिवत खत्म होने के अधिनियम के पारित होने के बाद अब फिर से पुरानी व्यवस्था लागु हो गयी है। बोर्ड के निरस्त होने के अधिनियम के पारित होने के बाद बदरीनाथ और केदारनाथ समेत इन मंदिरों के तीर्थ-पुरोहितों ने कई स्थानों पर जीत का जश्न मनाया।
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