ओम प्रकाश भट्ट, देहरादून में राजस्व पुलिस की अनोखी और देश की एकमात्र पुलिसिंग व्यवस्था इन दिनों लड़खड़ा गई है। इससे जुड़े अधिकारी और कर्मचारी पिछले सात दिनों से हड़ताल पर हैं। कलमबंद हड़ताल के चलते उत्तराखंड के आधे से अधिक क्षेत्रफल की पुलिस व्यवस्था लगभग ठप है। सरकार की तरफ से भी लोगों को हो रही दिक्कतों के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे राजस्व पुलिस के क्षेत्र में निवास कर रहे लोगों की कठिनाई बढ़ गई है। उत्तराखंड देश का अकेला राज्य है, जहां राजस्व पुलिस की यह व्यवस्था है। जो राजस्व से जुड़े कार्यो के साथ-साथ पुलिस और लॉ एंड आर्डर का कार्य भी देखती है। इसमें राजस्व पुलिस के उपनिरीक्षक का सहयोगी, राजस्व पुलिस उपनिरीक्षक, राजस्व पुलिस निरीक्षक और नायाब तहसीलदार जैसे अधिकारी और कर्मचारी है। नायब तहसीलदार को छोड़कर लगभग सभी अधिकारी कर्मचारी अपनी चार सूत्रीय मांगों को लेकर कलमबंद हड़ताल पर है। यह हड़ताल पूरे प्रदेश स्तर पर बने इन अधिकारियों के संगठन के आह्वान पर चल रही है। इसमें मुख्य मांग राजस्व निरीक्षक और रजिस्ट्रार कानूनगों के पदों के संविलियन की सरकार की योजना को रोकना, पुलिस के समान राजस्व पुलिस के अधिकारियों को वेतन व सुविधाए दिए जाना है। साथ ही प्रमोशन के लिए राजस्व निरीक्षक के 16वें बैच को शुरू किए जाने के साथ वेतनमान के सुधार से जुड़े मसले शामिल है। क्या कहते हैं आंदोलन में शामिल नेताआंदोलन को लीड कर रहे संघ के प्रांतीय अध्यक्ष विजयपाल सिंह मेहता का कहना है कि संगठन की चार में से तीन मांगों पर अगस्त माह में मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से अपर सचिव की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी सहमति जता दी थी। वहीं राजस्व परिषद की ओर से इस पर कार्यवाही की जानी थी जो आज तक नहीं हो पाई है। इसी लिए पूरे प्रदेश के राजस्व पुलिस निरीक्षक, राजस्व पुलिस उपनिरीक्षक और राजस्व सेवक से जुड़े सभी अधिकारी और कर्मचारी मजबूरन हड़ताल पर है। अभी कलमबंद हड़ताल है, गुरूवार से सभी जिला मुख्यालयों पर संघ से जुड़े अधिकारी और कर्मचारी धरना प्रदर्शन करेंगे। रेवन्यू क्षेत्र के आमजन है परेशान हड़ताल के चलते उत्तराखंड के आधे से अधिक गांवों में लोगों को पुलिस और राजस्व से जुड़े कार्य अटक गए हैं। अपराधों से जुड़े प्रकरणों की रिपोर्ट करने के लिए पटवारी चौकियों के बजाए तहसीलों में आना पड़ रहा है। वहां भी रिर्पोट और अन्य कागजातों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। देवाल के सुदूरवर्ती गांव ल्वाड़ी के मोहन सिंह बिष्ट पिछले छह दिनों से खेती और अन्य कार्यो से जुड़ी संस्तुतियों के लिए परेशान हैं। बिष्ट का कहना है कि छह दिन से लगातार पटवारी चौकी का चक्कर लगा रहा हूं, लेकिन हड़ताल के कारण किसान निधि से जुडा प्रमाणपत्र नहीं बन पाया है। मोहन सिंह की तरह हजारों लोग पिछले छह दिनों से न तो राजस्व पुलिस चौकी में प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखा पा रहे हैं और नहीं जरूरी कागजात की प्रतियां प्राप्त कर पा रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति, जांचों की प्रति, मूल निवास के लिए अग्रसारण, दाखिल-खारिज से जुड़ी प्रक्रिया, सरकारी योजनाओं में लाभार्थी की पहचान से जुड़े प्रपत्र आदि मुख्य हैं। क्या कहते है अधिकारी चमोली के जिलाअधिकारी हिमांशु खुराना का कहना है कि अन्य कर्मचारियों से कार्य लिया जा रहा है। तहसीलों में नायब तहसीलदार और तहसीलदार इस कार्य को देख रहे हैं। क्या है राजस्व पुलिस की व्यवस्था राजस्व पुलिस की यह व्यवस्था उत्तराखंड में नौंवी शताब्दी से चल रही है। 1847 के विद्रोह के बाद पूरे देश में अंग्रेजों ने रेगुलर पुलिस की व्यवस्था शुरू की थी, लेकिन पर्वतीय इलाकों में मितव्ययता और तत्कालीन कुमाऊ कमिश्नर हैनरी रैमजे की सलाह पर यहा राजस्व अधिकारियों को ही पुलिस और कानून-व्यवस्था का जिम्मा सौंपा गया था। इसमें राजस्व सेवक और पटवारी को पुलिस थाने की सभी शक्तियां समाहित थीं। इनके कार्यों को देखने के पर्यवेक्षण के लिए कानूनगों और फिर नायब तहसीलदार से लेकर तहसीलदार, उपजिला अधिकारी और जिलाअधिकारी को अधिकार मिले थे। शुरूआत में गढ़वाल में 86 और कुमाऊं में 125 पटवारी क्षेत्रों में राजस्व पुलिस चौकियां थीं। मेहता के अनुसार इस समय राजस्व उपनिरीक्षक के पद अब बढ़कर बारह सौ के आसपास हो गए हैं। इन राजस्व पुलिस चौकियों में पुलिस का सारा कार्य होता था और इसके लिए दो कर्मचारी तैनात होते थे। एक पटवारी और दूसरा उसका सेवक जिनका नाम अब बदल कर राजस्व उपनिरीक्षक और राजस्व सेवक कर दिया गया है। अपराधों की जांच से लेकर धरपकड़ तक इनके पास साधन के नाम पर एक हथकड़ी और डंडा होता था जो आज भी बदस्तूर जारी है। उत्तराखंड में कहा है यह राजस्व पुलिस व्यवस्था उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी 2018 में राजस्व पुलिस द्वारा जांच किए गए एक मामले पर फैसला देते समय इस व्यवस्था को बदलने के निर्देश राज्य सरकार को दिए थे। उत्तराखंड के सभी पर्वतीय जिलों के आधे से अधिक क्षेत्रफल अभी भी राजस्व पुलिस के तहत आता है। समय बदला है लेकिन इस व्यवस्था में बदलाव नहीं आ पाया है। राजस्व पुलिस के इन अधिकारियों की हड़ताल में मुख्य मसला समय के साथ संसाधनों से लैश किया जाना भी एक है।
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