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देहरादूनकांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने तय कर लिया है कि वे कांग्रेस नेतृत्व से मिलकर पंजाब के प्रभारी पद से खुद को रिलीव करने का आग्रह करेंगे। इसके दो कारण वे गिना रहे हैं। पहला, उनका स्वास्थ्य पोस्ट कोविड दिक्कतों के चलते उन्हें ऐसा करने को इजाजत नहीं दे रहा। दूसरा, उत्तराखंड के आगामी चुनावों के मद्देनजर उनको अब राज्य पर अधिक फोकस करना जरूरी है। कैप्टन बनाम सिद्धू विवाद न सिर्फ पंजाब में कांग्रेस की चुनावी जीत की संभावनाओं पर असर डाल रही, बल्कि उत्तराखंड में भी इसका असर दिखने लगा है। उत्तराखंड में हरीश रावत को कैंपेन कमिटी का अध्यक्ष बनाने के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व ने पंजाब में भी उनको पार्टी प्रभारी बनाए रखा है। देहरादून पहुंच रहे नाराज विधायक उत्तराखंड में धामी सरकार और बीजेपी नेताओं के खिलाफ हरीश रावत के हमलावर तेवरों की धार पंजाब विवाद के चलते कुंद होती दिखती है। पंजाब कांग्रेस के असंतुष्ट नेता और विधायकों के देहरादून पहुंचने और हरीश रावत के स्तर पर उनकी मान-मनौव्वल शुरू होने का असर यह हुआ कि पंजाब का कलह उत्तराखंड पहुंच गया। पंजाब की कलह शांत करने में लगे हरीश रावत इससे बीजेपी को विपक्षी दल की एकजुटता की पोल खोलने का मौका मिल गया। वह भी ऐसे वक्त में जबकि उत्तराखंड में विधानसभा का मॉनसून सत्र चल रहा है। ऐसे में हरीश रावत को सदन के बाहर से बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने में ताकत लगानी थी वो पंजाब की कलह को शांत करने की कवायद में ही व्यर्थ होती दिख रही है। अब पंजाब की कलह के चलते उनको दिल्ली का रुख करना पड़ सकता है।
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