पुलकित शुक्ला, देहरादूनअनलॉक-2 के तहत औद्योगिक गतिविधियां शुरू होने के बाद गंगाजल एक बार फिर से दूषित हो गया है। लॉकडाउन के दौरान पीने लायक हो चुके गंगाजल में फिकल कॉलीफॉर्म की मात्रा 60 तक पहुंच गई है। गंगा स्वछता के नजरिए से यह खबर चिंताजनक है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जून-जुलाई की मॉनिटरिंग में यह बात सामने आई है कि लॉकडाउन के दौरान अप्रैल में जहां हर की पैड़ी पर फिकल कालीफॉर्म की मात्रा 26 एमपीएम प्रति सौ एमएल थी वहीं जून-जुलाई में यह मात्रा 60 तक पहुंच गई है। फिकल कॉलीफॉर्म की यह मात्रा तय मानक 50 एमपीएम से अधिक है। हरिद्वार में हर की पैड़ी पर बहने वाला गंगाजल लॉकडाउन से पहले से भी ज्यादा प्रदूषित पाया गया है। ऋषिकेश के लक्ष्मण झूला में लॉकडाउन के दौरान फिकल कॉलीफॉर्म की मात्रा 12 एमपीएम रिकॉर्ड की गई थी, जो जून-जुलाई में दोगुने से भी ज्यादा हो गई है। आंकड़ों से यह तथ्य सामने आए हैं कि अनलॉक 2 के तहत औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने और बरसात होने से हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा जल काफ़ी दूषित हुआ है। पीसीबी के मुख्य पर्यावरण अधिकारी एसएस पॉल का कहना है कि फिकल कॉलीफॉर्म पानी की गंदगी सबसे बड़ा कारक है। पानी में जितनी अधिक इसकी मात्रा बढ़ती है पानी उतना ही दूषित होता है। इसका तय मानक 50 एमपीएम प्रति 100 ml है। इससे ज्यादा आने पर पानी दूषित माना जाता है। यह तत्व सीवरेज और कारखानों की गंदगी से पानी में बढ़ सकता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि लॉकडाउन के बाद कारखाने खुलने के कारण काफी मात्रा में बिना ट्रीटमेंट के सीवरेज गंगा में जा रही है।
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