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नैनीताल ने पूर्व मुख्यमंत्री के स्टिंग मामले में को एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दे दी है। कोर्ट के समक्ष सीबीआई ने प्रारंभिक जांच की सीलबंद रिपोर्ट पेश की। हालांकि, 4 घंटे तक चली बहस के बाद हाई कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की गिरफ्तारी पर रोक भी लगा दी। हाई कोर्ट की एकल पीठ ने कहा कि सीबीआई एफआईआर दर्ज कर जांच कर सकती और न्यायालय इसे रोक नही रहा है लेकिन इस मामले में न्यायालय के अंतिम आदेश आने तक कोई भी कार्रवाई नहीं की जाएगी। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से जुड़े स्टिंग प्रकरण में अब हाई कोर्ट अगली सुनवाई 1 नवंबर को करेगा। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पैरवी करने के लिए जाने माने वकील नैनीताल पहुंचे थे। कपिल सिब्बल ने बहस में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एसआर मुंबई केस में साफ कहा है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल द्वारा लिए गए निर्णय असंवैधानिक हैं इसलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य की सरकार फिर बहाल हुई तो कैबिनेट द्वारा स्टिंग मामले की एसआईटी से जांच का निर्णय लिया। सिब्बल ने इस पूरे प्रकरण को साजिश करार देते हुए कहा कि रविवार होने के बाद भी सीडी की प्रमाणिकता को लेकर चंडीगढ़ लैब से रिपोर्ट आ गई। सिब्बल ने हरक सिंह रावत व उमेश शर्मा के बीच बातचीत का ब्योरा भी कोर्ट के सामने प्रस्तुत किया। सरकार व सीबीआई की ओर से असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल ने इस बहस का जवाब देते हुए कहा कि जिस पर आरोप हैं, उसे जांच एजेंसी तय करने का अधिकार नहीं है। हरीश रावत की ओर से कोर्ट को यह भी बताया गया कि सीबीआई को इस मामले में जांच करने का अधिकार इसलिए नहीं है, क्योंकि राज्य की चुनी हुई सरकार ने अपने बहाल होते ही 15 मई, 2016 को राष्ट्रपति शासन के दौरान सीबीआई जांच की अधिकारिता संबंधी नोटिफिकेशन को वापस लेकर मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया था। हरीश रावत के अधिवक्ता ने सीबीआई की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट को भी अवैध बताते हुए उसे कोर्ट में पेश किए जाने पर आपत्ति जाहिर की और कहा कि इस रिपोर्ट के आधार पर हरीश रावत के खिलाफ कोई कार्यवाही की जाती है तो वह अवैधानिक होगी। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधांशू धुलिया की एकलपीठ ने सीबीआई की प्राथमिक जांच के बाद बनाई रिपोर्ट पर कहा कि अगर राज्यपाल के 31 मार्च 2016 का सीबीआई जांच का आदेश गलत होगा तब इसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इस बाबत यह उल्लेखनीय है कि विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप में किए गए एक स्टिंग में केंद्र सरकार ने 2 अप्रैल 2016 को राज्यपाल की मंजूरी के बाद सीबीआई जांच शुरु की। राज्य में कांग्रेस सरकार की बहाली हो गई और सरकार ने कैबिनेट बैठक में सीबीआई जांच को निरस्त कर मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया। इसके बाद भी सीबीआई ने जांच जारी रखी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को जांच के लिए 9 अप्रैल 2016 को समन भेजा। सीबीआई के लगातार समन भेजे जाने को हरीश रावत ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि राज्य सरकार ने 15 मई 2016 को सीबीआई जांच के आदेश को वापस ले लिया था और एसआईटी का गठन कर दिया गया था। इसकी वजह से सीबीआई को इस मामले की जांच का कोई अधिकार ही नहीं है। सीबीआई की पूरी कार्रवाई को निरस्त किया जाए। हाई कोर्ट ने सीबीआई को केस की जांच जारी रखने की इजाजत देते हुए यह कहा था कि कोई भी कदम उठाने से पहले उसे हाई कोर्ट की अनुमति लेनी होगी।
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