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देहरादून चीन और नेपाल के साथ सीमा विवाद के बाद हालिया स्थिति के मद्देनजर उत्तरी हिमालयी राज्य उत्तराखंड रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण है। चीन के साथ 350 किलोमीटर और नेपाल के साथ 275 किलोमीटर की सीमा साझा करने वाले उत्तराखंड के सीमाई इलाके हाई अलर्ट पर भी रहे। सुरक्षा के लिहाज से राज्य सरकार ने कई सारे कदम उठाए हैं। बॉर्डर तक पहुंचने की सुविधा के लिए हवाई पट्टी के साथ ही सड़क निर्माण का कार्य भी चल रहा है। इसमें हेलिपैड के निर्माण से लेकर एयर स्ट्रिप तैयार करना भी शामिल है। राज्य सरकार ने इसके साथ ही रिवर्स माइग्रेशन का प्लान भी तैयार किया है। पिछले कुछ सालों में खाली हो गए सीमावर्ती गांवों में आबादी के फिर लौटने के लिए योजनाएं बनाई गई हैं, जिन्हें अमल में लाया जा रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हमारे सहयोगी अखबार टीओआई से बातचीत में बताया, 'पिछले कुछ सालों में बॉर्डर के इलाकों की तरफ सरकार और लोगों की समझ में भी बदलाव आया है। अब वे प्राथमिकता के सेक्टर्स बन गए हैं। राज्य में हेलिपैड की संख्या 20 से 50 हो गई है। 3 एयर स्ट्रिप हैं और अल्मोड़ा में एक और एयर स्ट्रिप के लिए अनुमति मिल गई है।' इसके साथ ही सड़कें तैयार करने का काम भी तेजी से हो रहा है। सीएम ने बताया, 'बीआरओ ने सड़क बना दी, जिससे अब जोशीमठ से रिमखिम तक पहुंचने में 3 घंटे से भी कम का समय लगता है। यही दूरी पहले 10 घंटे में तय होती थी।' बाराहोती के नजदीक होने की वजह से रिमखिम का रणनीतिक महत्व है, जहां चीन की तरफ से घुसपैठ की घटनाएं होती रहती हैं। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार बॉर्डर के इलाकों की सुरक्षा के लिए तैयारियां सही दिशा में चल रही हैं। यह महत्वपूर्ण है कि सीमाई इलाकों में लोगों का आपस में संबंध बहाल हो। वहीं रिटायर्ड कर्नल प्रदीप गोयल ने बताया कि संकट या आपात समय के लिए सड़क से लेकर हवाई जुड़ाव के प्रयास भविष्य के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।
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