शिवानी आजाद, देहरादून 'मेरा काम हमेशा पहाड़ों को काटना या जमीन को खोदना था। मैंने कभी प्रकृति के संरक्षण का प्रयास नहीं किया। लेकिन आज मैं प्रकृति का शुक्रगुजार हूं कि उसने एक पेड़ के रूप में आकर मेरी जान बचाई।' उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने के बाद तबाही के बीच एक दिल को सुकून देने वाली खबर है। एक पौधे की क्या अहमियत अहमियत है, आपको इसका अंदाजा विक्रम चौहान के अल्फाजों से लग जाएगा। 49 साल का यह शख्स प्राकृतिक आपदा के बीच कुदरत के करिश्मे का जीता-जागता सबूत है। आइए जानते हैं विक्रम चौहान की दास्तां... जलप्रलय के दौरान मौत के मुंह से निकलने वाले विक्रम चौहान की अब प्रकृति के बारे में सोच बदल गई है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को उन्होंने बताया, 'मैं पेड़-पौधों का इस वजह से आदर करता था क्योंकि वे हमें ऑक्सीजन देते हैं। इससे ज्यादा मुझे कुछ पता नहीं था। लेकिन उस सुबह मैंने नया पाठ पढ़ा। प्रकृति के पास दो ताकत है- बचाने की और मारने की।' एक स्थानीय अस्पताल में विक्रम चौहान का इलाज कर रहे डॉक्टर संजय चौधरी कहते हैं, 'नेचर ने उनको बचा लिया। पहले उस पेड़ ने और फिर हॉट वॉटर स्प्रिंग ट्रीटमेंट की वजह से वह अब ठीक हो रहे हैं। पहले दिन के मुकाबले अब उनकी सेहत में सुधार दिख रहा है।' मिशन जिंदगी LIVE: विक्रम चौहान ऋषिगंगा हाइडिल पावर प्रोजेक्ट के उन चंद खुशनसीबों में से हैं, जो इस आपदा में बच गए। सिर और कान में जख्म की वजह से चौहान अब भी काफी पीड़ा झेल रहे हैं। देहरादून के अस्पताल में भर्ती होने से पहले उस मंजर को याद करते हुए उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ' मेरा मौत से सामना था।' चौहान आगे बताते हैं, 'रविवार की उस सुबह मैं रोज की तरह काम पर लगा था। मैंने अपनी खुदाई मशीन (एक्सकैवेटर) में नदी के किनारे से बालू भरी थी। अचानक बर्फीले पानी का उफान आया और मेरे साथ साइट पर मौजूद सभी लोग उसकी चपेट में आकर बह गए। मैं एक पेड़ से टकराया और मैंने उसे काफी मजबूती से पकड़ लिया। अगले 30 मिनट तक मैं इस पेड़ से चिपका रहा। तभी मेरे पास मदद पहुंची। रैणी गांव के कुछ लोगों ने मुझे देखा और मेरी जान बचाई। बर्फीले पानी की वजह से मैं कांप रहा था। उन्होंने मुझे पास में ही एक गर्म जलधारा में राहत के लिए लिटाया।' अपने आंसुओं पर किसी तरह काबू पाते हुए चौहान ने घटना का जिक्र करते हुए कहा, 'मेरी नाक, कान और कपड़े सभी कीचड़ से सने थे। मैंने अपने आसपास तेज और दर्दनाक चीखें सुनीं। कीचड़ की वजह से चारों ओर काला और भूरा नजर आ रहा था।' पढ़ें: अपने दो दोस्तों को इस जलप्रलय में खो चुके विक्रम चौहान काफी आहत हैं। चौहान ने बताया, 'डैम की मोटी दीवारों की वजह से पानी कुछ देर के लिए ठहरा। फिर यह अचानक हम लोगों की ओर बढ़ने लगा। पानी के बहाव ने मुझे एक किनारे पर फेंक दिया। मुझे एक पेड़ मिला और मैंने उसे पकड़ लिया। मुझे आशा है कि अनूप थपलियाल और राजेश थपलियाल भी खुशकिस्मत होंगे। वे दोनों मुझसे थोड़ी दूर पर मजदूरों को निर्देश दे रहे थे। वे दोनों मेरे अच्छे दोस्त थे। हम कई साल से एक-दूसरे को जानते हैं।' विक्रम और उनके दोनों साथी चमोली के लामबगड़ गांव के रहने वाले हैं। पिछले पांच साल से वे ऋषिगंगा पावर प्लांट पर काम कर रहे थे। उन्हें सिर्फ पेड़ काटना और जमीन खोदना मालूम था। चौहान का अब भी अपने साथियों के बचने की उम्मीद है। वह कहते हैं, 'रेस्क्यू का काम चल रहा है और हम उन्हें ढूंढने में सफल होंगे। मुझे पूरा भरोसा है कि मैं अपने दोस्तों को दोबारा देख सकूंगा।'
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