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शिवानी आजाद, देहरादून बुधारी देवी को कभी यह उम्मीद नहीं थी 7 फरवरी को आई भयानक बाढ़ में उनके बेटे बच पाए होंगे। इसके बावजूद उन्हें उम्मीद थी कि आखिरी बार वह उन्हें देख पाएंगी। लेकिन के एक सप्ताह बाद भी संदीप और जीवन के शव नहीं मिले। आखिरकार, रविवार को हरिपुर गांव में यमुना नदी के किनारे इन दोनों के पुतले बनाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। इन दोनों के बड़े भाई गुड्डू ने बताया, 'हमने एक सप्ताह तक इंतजार किया और फिर उम्मीद छोड़ दी। वे दोनों बांध के सामने काम कर रहे थे.. इसलिए हमें पता है कि वे बच तो नहीं पाए होंगे। बस हम यही उम्मीद कर रहे थे कि किसी तरह उनके शव मिल पाते। पर यह भी नहीं हुआ और हमारे पास ज्यादा समय था नहीं।' 14 दिन में करना होता है अंतिम संस्कार जौनसारी समुदाय में अगर कोई मर जाए और उसका शव न मिले तो 14 दिनों के भीतर उसके पुतले का अंतिम संस्कार करना होता है। संदीप और जीवन के चाचा और पंजिया गांव के प्रधान बलबीर चौहान ने कहा, 'उन पुतलों को दोनों के कपड़े पहनाए और उनका ठीक उसी तरह अंतिम संस्कार किया गया जैसे उनका किया जाता।' 16 मई को होनी थी संदीप की शादी जीवन (21) जौनसार के पंजिया गांव से तपोवन के लिए दो महीने पहले निकला था। वहां उसने सुना था कि हाइडल प्रॉजेक्ट में काम मिल सकता है। पैसा भी अच्छा मिल रहा था। उसने अपने भाई संदीप (24) को भी वहीं बुला लिया। 8 जनवरी को संदीप भी वहीं पहुंच गया। उसकी शादी 16 मई को तय हुई थी। आखिरी बार 6 फरवरी को हुई थी बात गुड्डू कहते हैं, 'मेरी उनसे 6 फरवरी को फोन पर बात हुई थी। वे खुश थे कि मैंने उन्हें फोन किया।' तपोवन में आई बाढ़ की खबर पाते ही गुड्डू वहां चल पड़े। लेकिन जब कुछ नहीं मिला तो उन्होंने वापस लौटने का फैसला किया। वह रविवार को घर वापस आए, भाइयों के पुतले तैयार करके उनका अंतिम संस्कार कर दिया।
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