मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

नागा संन्यासी परंपरा के साधुओं ने दशहरा पर किया शस्त्र पूजन

हरिद्वार हरिद्वार में दशहरे के के अवसर पर आदि जगद्गुरु द्वारा स्थापित दशनामी संन्यासी परंपरा के अखाड़ों में का विधान है। पिछले 2500 वर्षों से दशनामी संन्यासी परंपरा से जुड़े नागा संन्यासी इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने-अपने अखाड़ों में शस्त्र पूजन करते हैं। अखाड़ों में प्राचीन काल से रखे सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश नामक भालों को देवता के रूप में पूजा जाता है। शस्त्र पूजन की इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए दशहरे के दिन पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, कनखल में भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश नामक भाले देवता के रूप में पूजे गए। उन्हें दूध, दही ,शहद, फल-फूल और नवरात्र के अवसर पर उगाए गए हरेले से पूजा गया। यह भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश देवता रूपी भाले कुंभ मेले के अवसर पर अखाड़ों की पेशवाई के आगे चलते हैं और इन भाला रूपी देवताओं को कुंभ में शाही स्नानों में सबसे पहले गंगा स्नान कराया जाता है। उसके बाद अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, जमात के महंत और अन्य नागा साधु स्नान करते हैं। इसीलिए के अवसर पर अखाड़ों में शस्त्र पूजन का विशेष महत्व है। श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत रवींद्र पुरी महाराज ने बताया कि दशहरे के दिन हम अपने प्राचीन देवताओं और शस्त्रों की पूजा करते हैं क्योंकि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने राष्ट्र की रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र की परंपरा की स्थापना की थी। विद्वान पंडितों ने मंत्रोचार के बीच शस्त्र पूजन संपन्न कराया।


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