देहरादून, 19 दिसंबर (भाषा) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बृहस्पतिवार को यहां कहा कि दल बदल की समस्या के कारण लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति जनता के विश्वास में आ रही कमी को देखते हुए संविधान की दसवीं अनुसूची में जरूरी बदलाव करने की जरूरत है। यहां विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के 79 वें सम्मेलन के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि सम्मेलन के दौरान दल बदल कानून से संबंधित संविधान की दसवीं अनुसूची और अध्यक्ष की भूमिका पर लंबी चर्चा हुई। उन्होंने कहा, ‘‘दल बदल के कारण लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति जनता के विश्वास में कमी आ रही है। पीठासीन अधिकारियों का मत है कि इस विश्वास को मजबूत करने के लिये सदन के नियमों में परिवर्तन किये जायें।’’ बिरला ने कहा, ‘‘पीठासीन अधिकारियों का निर्णय अंतिम होता है और न्यायालय द्वारा इस पर टिप्पणी करना चिंता का विषय है और इसलिये इस कानून में जरूरी संशोधन के लिये एक समिति का गठन किया गया है।’’ उन्होंने बताया कि यह समिति संसद और सभी राज्यों की विधानसभाओं से व्यापक विचार विमर्श कर संविधान में संशोधन के लिए सुझाव देगी जिससे अध्यक्ष की मर्यादा और प्रतिष्ठा बनी रहे और उनके निर्णयों पर कोई सवाल नहीं उठा सके। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘‘सम्मेलन के दौरान शून्यकाल पर भी व्यापक चर्चा हुई और सर्वसम्मति से सभी पीठासीन अधिकारियों ने तय किया कि शून्यकाल में अविलंब लोक महत्व के विषयों को और सार्थक बनाया जाये और जिन सदनों में यह व्यवस्था नहीं है वहां इस परंपरा को शुरू किया जाये।’’ उन्होंने बताया, ‘‘पीठासीन अधिकारियों ने सदस्यों के कार्यवाही में बार-बार व्यवधान डालने, आसन के समक्ष आने तथा नारेबाजी करने को उचित नहीं माना और इस संबंध में सर्वसम्मति से कठोर नियम बनाने की जरूरत पर बल दिया है।’’ उन्होंने कहा कि सम्मेलन में इस पर प्रस्ताव पारित किया गया है और इसे जल्द अमल में लाने की कोशिश होगी। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘‘इसके अलावा, देश के सभी विधायी निकायों के नियमों में एकरूपता लाने पर भी सहमति बनी जिसके लिये शीघ्र एक समिति का गठन किया जायेगा।’’ उन्होंने बताया कि जनप्रतिनिधियों के क्षमतानिर्माण की कार्य योजना पर भी चर्चा हुई और तय किया गया कि लोकसभा सचिवालय के अधिकारी तीन वर्ष तक राज्य के सदनों में विधायकों के शिक्षण और प्रशिक्षण में सहयोग करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘इस कार्यक्रम के तहत लोकसभा के अधिकारी राज्यों में आयेंगे और राज्यों के विधायक लोकसभा में आयेंगे।’’ इस संबंध में उन्होंने भारत और मालदीव के बीच संधि का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की संसद इस तरह के प्रबोधन कार्यक्रम देश के बाहर भी चला रही है। बिरला ने बताया कि सम्मेलन में यह सुझाव भी आया कि उत्कृष्ट सांसद की तर्ज पर उत्कृष्ट विधायक पुरस्कार भी स्थापित किया जाये। उन्होंने कहा, ‘‘संसद में 1958 से लेकर अब तक लगभग 40 लाख पुस्तकों का डिजिटलीकरण किया जा चुका है और संसद की तरफ से राज्य के सदनों में भी ऐसा तकनीकी सहयोग दिया जायेगा ताकि इसका लाभ आम जनता को मिल सके।’’ बिरला ने बताया कि सम्मेलन के दौरान इस बात पर भी सहमति बनी कि राज्य विधानमंडलों में बैठकों की संख्या में वृद्वि हो जिससे सरकार के कामकाज में पारदर्शिता आये और कार्यपालिका की जवाबदेही बढ़े। उन्होंने इस संबंध में सरकारों से भी आग्रह किया कि वे लोकतंत्र को मजबूत करने के लिये सदन की बैठकें आयोजित करने में सहयोग दें। बिरला ने कहा, ‘‘वर्ष 2021 में पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के 100 वर्ष पूरे हो जायेंगे और इसे शताब्दी वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया गया है। इस कार्यक्रम को पहले विधानसभाओं में और उसके बाद संसद में जोर शोर से मनाया जायेगा। इससे पहले दो दिवसीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए बिरला ने कहा कि सम्मेलन में उच्चकोटि की चर्चा हुई और सम्मेलन एक निर्णायक मोड़ पर समाप्त हुआ है। समापन समारोह में उत्तराखंड की राज्यपाल बेबीरानी मौर्य ने कहा, ‘‘लोग अपने प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी अपनी निर्वाचित प्रतिनिधि को देते हैं और अगर सदन का समय शोर शराबे और व्यवधान के कारण बर्बाद होता है तो यह जनता के साथ धोखा है।
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