मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

देश के पहले सीडीएस होंगे जनरल विपिन रावत! पीढ़ियों से सेना में सेवाएं दे रहा है परिवार

देहरादून प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से (सीडीएस) का नया पद सृजित करने के ऐलान के बाद अब इस पर अंतिम मुहर लग गई है। कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का नया पद बनाने को मंजूरी दे दी है। अब खबर है कि भारतीय थल सेना के पूर्व प्रमुख जनरल को पहले की जिम्मेदारी दी जा सकती है। पीढ़ियों से सेना में सेवाएं दे रहा परिवार देश के 27वें थल सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत सितंबर 2016 में भारतीय सेना के वाइस चीफ बने थे। रावत ने जनरल दलबीर सिंह के रिटायर होने के बाद भारतीय सेना की कमान 31 दिसंबर 2016 को संभाली थी। रावत का परिवार कई पीढ़ियों से भारतीय सेना में सेवाएं दे रहा है। उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत थे जो कई सालों तक भारतीय सेना का हिस्सा रहे। जनरल बिपिन रावत इंडियन मिलिट्री एकेडमी और डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में पढ़ चुके हैं। इन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से डिफेंस सर्विसेज में एमफिल की है। वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर बनाया था आर्मी चीफ उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्मे रावत 16 दिसंबर 1978 में गोरखा राइफल्स की फिफ्थ बटालियन में शामिल हुए। यहीं उनके पिता की यूनिट भी थी। दिसंबर 2016 में भारत सरकार ने जनरल बिपिन रावत से वरिष्ठ दो अफसरों लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीन बक्शी और लेफ्टिनेंट जनरल पीएम हारिज को दरकिनार कर भारतीय सेना प्रमुख बना दिया। जनरल बिपिन रावत गोरखा ब्रिगेड से निकलने वाले पांचवे अफसर हैं जो भारतीय सेना प्रमुख बनें। 1987 में चीन से छोटे युद्ध के समय जनरल बिपिन रावत की बटालियन चीनी सेना के सामने खड़ी थी। यह भी पढ़ेंः रावत को 11 गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटैलियन में कमिशन मिला था। इसके बाद वह 1986 में चीन से लगे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर इन्फेन्ट्री बटैलियन संभाल चुके हैं। रावत 5 सेक्टर राष्ट्रीय राइफल्स और कश्मीर घाटी में 19 इन्फेन्ट्री डिविजन की अगुआई भी कर चुके हैं। ब्रिगेडियर के तौर पर उन्होंने कॉन्गो में यूएन पीसकीपिंग मिशन के मल्टीनैशनल ब्रिग्रेड की अगुआई की थी। अशांत इलाकों में काम करने का अनुभव रावत के पास अशांत इलाकों में लंबे समय तक काम करने का अनुभव है। भारतीय सेना में रहते उभरती चुनौतियों से निपटने, नॉर्थ में मिलटरी फोर्स के पुनर्गठन, पश्चिमी फ्रंट पर लगातार जारी आतंकवाद व प्रॉक्सी वॉर और पूर्वोत्तर में जारी संघर्ष के लिहाज से उन्हें सबसे सही विकल्प माना जाता था।


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