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अल्मोड़ा में इतिहास के असोसिएट प्रफेसर निर्मल कुमार 800 साल पुराने ऐसे घरों को तलाश रहे हैं, जो भूकंपरोधी हैं। 55 साल के निर्मल कुमार इन दिनों उत्तराखंड की गलियों में घूम रहे हैं और ऐसे घरों को तलाशकर उनको पुनर्विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रफेसर निर्मल इन घरों को होम स्टे में बदलने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे लोगों की कमाई भी हो सके। ये घर स्टाइल में बनाए गए हैं, जोकि स्थानीय स्थापत्य कला है। पिछले छह महीने से हर वीकेंड पर प्रफेसर निर्मल कुमार पहाड़ों में निकल जाते हैं। जब वह अल्मोड़ा में काफी दूर स्थित गांव खूंठ जाने के लिए बस में चढ़ते हैं तो अकसर लोग भी उनसे पूछते हैं, पलायन के बाद लगभग खाली हो चुके गांव में वह क्या करने जाते हैं। बता दें कि खूंठ गांव स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और यूपी के पूर्व सीएम गोविंद बल्लभ पंत का गांव है। प्रफेसर निर्मल कुमार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक प्रॉजेक्ट पर काम कर रही टीम को लीड कर रहे हैं। यह टीम सदियों पुराने आर्किटेक्चर पर बने घरों को तलाशने और उन्हें रेनोवेट करने का काम कर रही है। निर्मल कुमार कहते हैं, 'मेरी टीम में चार और प्रफेसर, दो आर्किटेक्ट और दो छात्र हैं। हम कुमाऊं क्षेत्र के इन घरों को आधुनिक तकनीक और परंपरागत तरीकों से मेलजोल से संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। ये सारे घर बखोली स्टाइल में बने हैं, जोकि भूकंपरोधी हैं।' मजबूती है बखोली आर्किटेक्चर की खासियत बखोली स्टाइल के घर लगभग 800 साल पुराने हैं। इसमें एक जैसे कई घर लाइन में बने होते हैं, जिसमें संयुक्त परिवार रहते हैं। इन सभी घरों की छतें एक ही होती हैं। इन घरों को थोड़ी ऊंचाई पर बनाया जाता है। इनकी दीवारें मोटी और छत हल्की होती है। छतों की ऊंचाई भी कम होती है। कुल मिलाकर घर ऐसा होता है कि निचला हिस्सा भारी और ऊपरी हिस्सा हल्का होता है। उत्तराखंड में 1700 घर ऐसे हैं, जिसमें रहने वाले लोग नौकरी की तलाश में बाहर चले गए हैं। प्रफेसर निर्मल ऐसे कई घरों को संरक्षित करने में लगे हैं। खूंठ गांव में 121 घर हैं, जिसमें से सिर्फ 20 ऐसे हैं, जहां लोग रहते हैं। उत्तराखंड के बहुत सारे लोग नौकरी की तलाश में बाहर जाते हैं, जिसके चलते गांवों में बहुत कम लोग बचे हैं। प्रफेसर निर्मल ने इस समस्या को भी हल करने की कोशिश की है। प्रफेसर निर्मल बताते हैं, 'मैंने कुछ लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि अगर वे पैसे कमा सकें तो बाहर नहीं जाएंगे। मैंने इन घरों को संवारने के बारे में सोचा, जिससे लोगों का पलायन भी रुके और इतने पुराने आर्किटेक्चर को भी संरक्षित किया जा सके।' प्रफेसर निर्मल के कई साथी भी इस काम में उनके साथ आए लेकिन मुख्य समस्या पैसों की थी। सैकड़ों साल पुराने घरों में पहुंचाया पानी और बिजली इस टीम ने यह प्लान मंत्रालय के सामने रखा, जिसने शुरुआती तौर पर इन घरों को रेनोवेट करने के लिए 50 लाख का फंड जारी कर दिया। इस टीम ने काम शुरू ही किया था कि इनकी मुलाकात हाल ही में दिल्ली से अल्मोड़ा शिफ्ट हुए आर्किटेक्ट कपल निकिता वर्मा और क्षितिज अग्रवाल हुआ। निकिता ने बताया, 'हमारे सामने चुनौती थी कि हम इन घरों को नुकसान पहुंचाए बिना इसमें बिजली और पानी जैसी जरूरी चीजें दे सकें। हमारे लिए जरूरी था कि हमें दीवारों, प्लास्टर और लकड़ी के दरवाजों को नुकसान ना पहुंचाएं। हमने इन कामों के लिए गांव के कारीगरों की मदद ली। अब हर घर में 3000 लीटर पानी स्टोर करने की क्षमता है।' इस टीम ने जून में पहले घर पर काम शुरू किया और जल्द ही काम पूरा हो गया। चार और घरों पर काम चल रहा, जिसके मार्च तक पूरा होने की उम्मीद है। इन घरों में अब पर्यटक भी रुक सकेंगे और अल्मोड़ा समेत उत्तराखंड के अन्य टूरिस्ट प्लेस का मजा ले सकेंगे।
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