गुरुवार, 24 जून 2021

भाप से चलता है पंखा... 200 साल से कई पीढ़ियां कर रही हैं कारोबार

देवेश सागर, हरिद्वार देश के बड़े प्रौद्योगिकी संस्थानों में शुमार आईआईटी रुड़की (IIT Roorkee) ने कई कार्य ऐसे किए हैं, जिन कार्यों से रुड़की ने विश्व में झंडे गाड़े हैं, लेकिन आज हम बात कर रहें हैं उस दो सौ साल से भी अधिक पुराने एक हुनर की, जो आज तक हरिद्वार जिले के रुड़की शहर की पहचान बना हुआ है। रुड़की शहर में बना भाप से चलने वाला टेबल पंखा आज भी देश ही नहीं विदेशों में भी भारतीय हुनर का लोहा मनवा रहा है। भाप चलित तकनीक से चलने वाले टेबल फैन से रुड़की शहर के निवासी अरशद मामून और उनकी तीन पीढ़ियों की यादें जुड़ी हुई हैं। विदेश में भी मांग धर्मनगरी हरिद्वार स्थित रुड़की शहर के रहने वाले अरशद मामून का कहना हैं कि उनके पूर्वजों से ये उन्हें विरासत में मिला है। इस दो सौ साल पुराने भाप चलित पंखे को देखकर ही इन्होंने कुछ ऐसे ही 10 भाप चलित पंखे के मॉडल तैयार किए हैं। देशभर के अलावा विदेश में भी इस पंखे की खासी डिमांड है। एक पंखे से उनका कारोबार शुरू हुआ, जो पिछले लंबे अरसे से परिवार के भरण-पोषण का जरिया बना हुआ है। यह भाप चलित पंखा देश के अलावा विदेश में भी बेहद पसंद किया जाता है और सपन्न लोग इसे शो-पीस के रूप में रखते हैं। मॉडल के लिए भी ले रहे हैं छात्र बड़े शिक्षण संस्थानों के छात्र पढ़ाई के दौरान मॉडल तैयार कराने से लेकर और प्रैक्टिल करने के लिए अरशद मामून की वर्कशॉप में आते हैं। बचपन से ही इंजीनियरिंग का हुनर रखने वाले अरशद का कहना है कि बिना इंजीनियरिंग की पढ़ाई और बिना डिग्री के यह अनुभव उनके पुरखों से उन्हें मिला है। परिवार में शुरुआत से ही इस तरह की कारीगरी को किया जाता रहा है। यूनिक पीस के रूप में ऐसे ही कई उपकरण उन्होंने इजाद किये हैं। केरोसिन का किया जाता है उपयोग अरशद बताते हैं कि ये भाप चलित पंखा केरोसिन (मिट्टी तेल) से चलता है। पहले पंखे के नीचे वाले हिस्से में तेल डाल कर दीये के रूप में जलाया जाता है। उसके बाद पिस्टन की मदद से इसको चलाया जाता है। दरअसल, ब्रिटिश कॉल के दौरान इजाद हुए इस पंखे को आजादी के बाद से मुनासिब पहचान नहीं मिल पाई, जबकि ये भाप चलित पंखा विदेश में भी अपनी खास पहचान रखता है।


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