देवेश सागर, हरिद्वार कुंभ में जहां नागा सन्यासियों का अपना विशेष महत्व होता है तो वहीं नागाओं के जीवन में धूनी का भी अलग स्थान होता है। हरिद्वार कुंभ के दौरान आने वाले तमाम नागा जहां अपना अलग तंबू लगाते हैं तो वहीं अग्नि के प्रतीक धूनी को भी वहीं स्थापित कर उसी पर अपने हाथों से भोजन पकाते हैं। नागा सन्यासियों की धूनी लोगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र होती है और भारी संख्या में श्रद्धालु नागा संन्यासियों के दर्शन उनके धूनी पर ही करते हैं। खुद ही बनाते हैं भोजन नांगा सन्यासी के जीवन में धूनी भस्म, त्रिशूल और रुद्राक्ष का एक विशेष महत्व होता है। कुंभ के दौरान इन नागा सन्यासियों के कई रूप जनता को देखने को मिलते हैं। निरंजनी अखाड़े के सचिव राम रतन गिरी का कहना है कि नागा सन्यासी कुंभ के दौरान अपने अखाड़े की छावनी में अलग तंबू तो लगाते ही हैं। साथ ही इस तंबू के बाहर अग्नि का प्रतीक धूनी भी प्रज्जवलित करते हैं, जिसे कुंभ के अंतिम दिन तक पूजा जाता है। इस धूनी पर ही नागा की पूरी दिनचर्या आधारित होती है। इस धूनी की भस्म से वह अपना प्रतिदिन भस्म श्रृंगार करते हैं और इसी पर अपना भोजन पकाते हैं। नागा कुंभ के दौरान किसी दूसरे के हाथ का पका भोजन भी ग्रहण नहीं करते हैं। 'धूनी पंचतत्व का स्वरूप होता है' नागा सन्यासी अजय गिरी का कहना है कि धूनी हमारे प्रत्यक्ष देवता हैं। इनको जो भी भोग दिया जाता है, उसको यह ग्रहण करते हैं, क्योंकि धूनी अग्नि का रूप माना जाता है और पंचतत्व का स्वरूप होती है। इनके सान्निध्य में हम बैठकर तपस्या करते हैं। उनका कहना है कि कुंभ मेले के उपरांत साधु संत अपने आश्रम में निवास करते हैं और कई साधु देशभर का भ्रमण करते हैं। नागा सन्यासियों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। कुंभ का शाही स्नान करने के लिए सभी नागा सन्यासी पूरे देश से कुंभ नगरी में पहुंचते हैं। इसी कारण लोगों को सभी नागा सन्यासी एक साथ देखने को मिलते हैं। दिगंबर किरण भारती नागा सन्यासी का कहना है कि नागा सन्यासी द्वारा स्थापित धूनी पर तपस्या की जाती है, जिसे देश दुनिया में खुशहाली बनी रहे। धूनी पर ही हमारे द्वारा भोजन बनाया जाता है और धूनी की भभूति से ही हम श्रृंगार करते हैं।
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