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देहरादून वैसे तो जीवन की आखिरी सांस तक कांग्रेसी रहे, लेकिन उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी उन पर अपना हक जताती नजर आ रही है। उसके मंचों से एन. डी. तिवारी की जय-जयकार हो रही है। कोशिश यह साबित करने की दिख रही है कि कांग्रेस नारायण दत्त तिवारी को उतना सम्मान नहीं दे पाई, जिसके वह हकदार थे। इस साल स्व. एनडी तिवारी की जयंती पर 18 अक्टूबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रुद्रपुर स्थित पंतनगर औद्योगिक क्षेत्र का नाम तिवारी के नाम पर रखने की घोषणा की। बीजेपी जहां पंतनगर सिडकुल को तिवारी के नाम पर करके नैनीताल और ऊधमसिंह नगर के तराई इलाकों में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है, वहीं राज्य में ब्राह्मणों की नाराजगी को भी खत्म करने की कोशिश में है। तिवारी केवल उत्तराखंड में ही बीजेपी को उपयोगी नहीं लग रहे हैं, बल्कि यूपी में भी बीजेपी को उनके जरिए फायदा दिख रहा है। उत्तराखंड में बीजेपी से ब्राह्मणों की दिख रही दूरी उत्तराखंड में भी ब्राह्मण मतदाताओं की बीजेपी से नाराजगी की बात कही जा रही है । देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा जिस तेजी से गरमाया, उसने भी ब्राह्मणों में नाराजगी की धलक दिख रही है। हालांकि प्रधानमंत्री ने अपने केदारनाथ दौरे में अपने संबोधन के दौरान तीर्थ पुरोहितों और पुजारियों की जमकर तारीफ कर ब्राह्मण जाति को साधने का प्रयास भी किया लेकिन प्रधानमंत्री की देवस्थानम बोर्ड पर चुप्पी से ब्राह्मण अब भी नाराज हैं और मुख्यमंत्री के अगले कदम पर नजर गड़ाए हुए हैं। राज्य में पांच साल में बीजेपी ने तीन सीएम बनाए, लेकिन इनमें से एक भी ब्राह्मण नहीं हुआ। ब्राह्मण समुदाय एक तरफ सरकार की ओर से अवसर ना मिलने के चलते नाराज है तो दूसरी तरफ देवस्थानम बोर्ड का गठन उसकी नाराजगी की मुख्य वजह है। पहाड़ों में दलित और ब्राह्मणों की गरीबी कई जगहों पर एक जैसी है, इस कारण महंगाई भी ब्राह्मणों को सबसे ज्यादा परेशान कर रही है। पिछले लगभग पौने पांच वर्षों के शासन में सबसे अधिक समय तक सत्ता में रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक ठाकुरवादी नेता की ही छवि बनाई। प्रदेश की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण जाति का वर्चस्व रहा है। राज्य गठन के बाद बनी अंतरिम सरकार के बाद क बाद अब तक 5 बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री और 4 बार ठाकुर मुख्यमंत्री प्रदेश की कमान संभाल चुके हैं। 20 सालों में 12 सालों तक ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने सत्ता संभाली, जिनमें 5 साल नारायण दत्त तिवारी, 5 साल भुवन चंद्र खंडूरी और डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और दो साल विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली। राज्य के कांग्रेस शासन में कुल तीन मुख्यमंत्री बने, जिनमें से दो ब्राह्मण रहे । 25 फीसदी ब्राह्मण मतदाता प्रदेश में मतदाताओं का प्रतिशत देखें तो लगभग राज्य में 25 फीसदी मतदाता ब्राह्मण माने जाते हैं, जबकि क्षत्रिय मतदाताओं की संख्या 35 फीसदी मानी जाती है। राज्य की पहाड़ी सीटों पर तो आज भी ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता ही जीत का समीकरण तय करते हैं। नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हैं, उनका केवल कांग्रेस ही नहीं, राज्य के सभी दलों में समर्थक रहे हैं। उनको उत्तराखंड में ‘विकास पुरुष’ कहा जाता रहा है।उत्तराखंड का सबसे ज्यादा विकास और संवारने का श्रेय भी तिवारी को जाता है। उन्होंने दलगत भावना से ऊपर उठकर हर राजनेता का सम्मान किया था। इसलिए उन्होंने हमेशा जाति सम्प्रदाय से से ऊपर उठकर विकास की राजनीति की है। तिवारी के शासन में जहां इस नए राज्य को कई उद्योग मिले, वहीं सबसे ज्यादा नौजवानों को सरकारी नौकरियां तो मिली ही, प्राइवेट कंपनियों में भी काम मिला। हर दल का समर्थक मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य में किए गए उनके कामों को आज भी याद करता है ।
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