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उत्तराखंड में वरिष्ठतम वन अधिकारी होने का दावा करने वाले भरतरी को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बफर जोन में हुए अवैध निर्माण के आरोपों के बाद पिछले साल नवंबर में वन विभाग के प्रमुख पद से हटाकर उत्तराखंड जैवविविधता बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था।
स्थानांतरण की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली भरतरी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के कार्यवाहक न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ ने राज्य सरकार से इस संबंध में दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।
भरतरी ने याचिका में कहा है कि वह प्रदेश में भारतीय वन सेवा के वरिष्ठतम अधिकारी हैं लेकिन राज्य सरकार ने 25 नवंबर, 2021 को उन्हें वन विभाग के प्रमुख के पद से हटाकर बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया जो संविधान के विरूद्ध है।
भरतरी ने याचिका में दावा किया है कि उनके तबादले का एक कारण कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुआ अवैध निर्माण भी है।
बताया जा रहा है कि भरतरी इन निर्माण कार्यों की जांच कर रहे थे जिसके कारण उनका तबादला कर दिया गया। आरोप है कि तत्कालीन वन मंत्री (हरक सिंह रावत) एक अन्य अधिकारी के समर्थन से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण कार्यों की जांच की दिशा को भटकाने के लिए उन्हें वन विभाग के प्रमुख के पद से हटाना चाहते थे।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि उन्होंने इस संबंध में राज्य सरकार को चार ज्ञापन भी सौंपे लेकिन सरकार ने इनमें से एक का भी जवाब नहीं दिया।
भरतरी ने याचिका में यह भी दावा किया है कि उनके तबादले के पीछे राजनीतिक कारण थे और यह उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन भी है।
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