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उत्तराखंड के जिले में स्थित देवीधुरा के मंदिर के प्रांगण में सैकड़ों लोग इकट्ठे हुए और एक-दूसरे पर पत्थर फेंककर मनाया। इस अनोखे त्योहार में मंदिर की देवी को खुश करने के लिए पत्थर फेंकने का खेल खेलकर लहू बहाए जाने की परंपरा है। यह त्योहार हर साल रक्षाबंधन के दिन श्रावण की पूर्णिमा पर बारही देवी को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि देवी तभी प्रसन्न होती हैं जब खेल के दौरान एक मानव बलि के बराबर लहू बहाया जाए। पत्थर फेंकने के इस खेल को देखने के लिए आसपास के गांवों के हजारों लोग वहां आते हैं। रोचक बात यह है कि पत्थर फेंकने का यह खेल केवल 10 मिनट के लिए होता है और इसमें करीब 100 लोग घायल हो जाते हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी बीसी जोशी ने बताया, 'पुराने समय में इस अवसर पर देवी को प्रसन्न करने के लिए हर साल मानव बलि दी जाती थी। मान्यता के अनुसार, मानव बलि देने के लिए जब एक बूढ़ी औरत के एकमात्र पोते की बारी आई तो उसने देवी से उसका एकमात्र वारिस होने के कारण उसे छोड़ देने की प्रार्थना की। देवी ने उसकी प्रार्थना सुन ली और वह अपने भक्तों के स्वप्न में आईं और उनसे एक-दूसरे पर पत्थर फेंककर बग्वाल खेलने और जमीन पर उतना रक्त बहाने को कहा जितना एक मानव बलि के बराबर हो।' हालांकि बग्वाल के दौरान पत्थरों के प्रयोग पर उच्च न्यायालय का प्रतिबंध है, लेकिन फिर भी स्थानीय युवा अधिकारियों को चकमा देकर इसका प्रयोग कर लेते हैं। चंपावत के जिलाधिकारी एसएन पांडेय के अनुसार, इस त्योहार को देखने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व सांसद भगतसिंह कोश्यारी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल समेत हजारों दर्शक जुटे।
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