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देहरादून '' दवा बनाकर और कंपनी मुश्किल में फंस गई है। के नाम पर इसके प्रचार को ने रोक दिया है और जांच जारी है। इस बीच राजस्थान के निम्स यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर बीएमस तोमर ने भी क्लिनिकल ट्रायल की बात से पल्ला झाड़ लिया है। अपने ऊपर लग रहे आरोपों का बचाव करते हुए पतंजलि ने कहा कि उसने दवा के निर्माण में किसी भी प्रकार के कानून का उल्लंघन नहीं किया है। पतंजिल के प्रवक्ता एस के तिजारावाला ने ट्वीट करके कहा, 'पतंजिल ने इस औषधि के लेबल पर कोई अवैध दावा नहीं किया है। औषधि का निर्माण और बिक्री सरकार के द्वारा तय नियम-कानून के अनुसार होता है। किसी की व्यक्तिगत मान्यताओं और विचारधारा के अनुसार नहीं। पतंजलि ने सारी विधिसम्मत अनुपालना की है। बेवजह बयानबाजी से परहेज करें।' उन्होंने एक और ट्वीट में स्पष्ट करते हुए लिखा, 'भ्रांति का कहीं स्थान नहीं है। दो बातें स्पष्ट हैं। 1- 1.अश्ववगंधा, गिलोय, तुलसी दिव्य जड़ी-बूटियों के पारपंरिक ज्ञान और अनुभव के अनुसार इस औषधि का लाइसेंस लिया गया। 2.औषधि के कोरोना मरीजों पर विधिसम्मत क्लिनिकल कंट्रोल ट्रायल के सकारात्मक परिणामों को साझा किया।' उत्तराखंड के सीएम बोले- कोई प्रोसीजरल फॉल्ट रहा होगा उधर इस विवाद पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने कहा कि इसे बनाने में कोई 'प्रोसीजरल फॉल्ट' रहा होगा। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पतंजलि की यह दवाई अपने ट्रायल पर खरी उतरी है। रावत ने कहा कि उन्होंने कहीं पढ़ा है कि इसके ट्रायल के परिणाम बहुत अच्छे रहे हैं। कोरोनिल से मरीज तीन दिन में 69% और एक सप्ताह में शत प्रतिशत ठीक हो जाते हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री ने कहा कि हर काम विधिक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर काम की एक प्रक्रिया होती है, जिसका पालन किया जाना चाहिए । उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि दवाई बनाने में कोई प्रोसीजरल फाल्ट रहा होगा।' मंगलवार को बाबा रामदेव के कोरोनिल को बाजार में उतारते ही इसे लेकर विवाद शुरू हो गया, जिसके बाद केंद्र के आयुष मंत्रालय ने इसके ट्रायल की पूरी जानकारी तलब करते हुए इसके कोरोना की दवाई के रूप में प्रचार पर रोक लगा दी।
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