मंगलवार, 23 जून 2020

हरिद्वार कुंभ मेले पर पड़ सकता है कोरोना का कुप्रभाव, हालात नहीं सुधरे तो प्रतीकात्मक होगा कुंभ: रावत

पुलकित शुक्ला, देहरादून/हरिद्वार चार धाम यात्रा और कांवड़ मेले के बाद सबसे बड़े धार्मिक आयोजन कुंभ मेले पर भी कोरोना का कुप्रभाव पड़ सकता है। उत्‍तराखंड के मुख्यमंत्री ने संकेत दिए हैं कि अगर हालात नहीं सुधरे तो कुंभ मेले का आयोजन प्रतीकात्मक रूप से करवाया जाएगा। हाल ही में मुख्यमंत्री ने तय समय पर कुंभ मेले का आयोजन होने की बात कही थी। कोरोना वायरस ने देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में लोगों के रहन सहन और धार्मिक मान्यताओं को प्रभावित किया है। देशभर में कई धार्मिक गतिविधियां और परंपराएं कोरोना महामारी के चलते रद्द या प्रभावित हुई हैं। कोरोना के लगातार बढ़ते मामले और मौजूदा हालातों को देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि धर्मनगरी हरिद्वार में अगले साल होने वाला महाकुंभ मेला भी कोरोना महामारी से प्रभावित हो सकता है। 13 अखाड़ों के 3 संत ही कर पाएंगे स्‍नान दो दिन पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अखाड़ा परिषद के संतों से बात करते हुए कुंभ मेले को 2022 में आयोजित किए जाने की अटकलों पर विराम लगाते हुए कहा था कि मेला निर्धारित समय पर ही आयोजित होगा। हालांकि कुंभ मेले के प्रारूप को लेकर भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बड़े संकेत दिए हैं। सीएम ने कहा कि अगर कोरोना से बिगड़े हालात नहीं सुधरते हैं तो कुंभ मेला सीमित ढंग से आयोजित होगा। अगले साल 11 मार्च को पहला शाही स्नान होना है, उससे पहले फरवरी महीने में एक बार परिस्थितियों की समीक्षा की जाएगी। अगर परिस्थितियां सामान्य नहीं हुई तो सभी 13 अखाड़ों के 3 - 3 प्रतिनिधि संत ही प्रतीकात्मक रूप से गंगा स्नान करेंगे। क्या कहते हैं साधु-संत अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि परिस्थिति के अनुसार अगर आवश्यकता पड़ी तो कम संख्या में संत शाही स्नान करने पर सहमत होंगे। लेकिन प्रत्येक अखाड़े से सिर्फ तीन संतों के स्नान करने वाली बात गलत है, ये संभव नहीं है। महंत नरेंद्र गिरि ने बताया कि कम से कम स्वतंत्र भारत के इतिहास तो ऐसा नहीं हुआ है जब कुंभ मेला प्रतीकात्मक रूप से संपन्न करवाया गया हो। राजशाही के दौरान एक बार उज्जैन में महामारी के दौरान राजा के अनुरोध पर 13 अखाड़ों के साधु संतों ने स्नान किया था।


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