शनिवार, 18 अप्रैल 2020

Char Dham Yatra: 400 साल में 4 बार...बदरीनाथ-केदारनाथ में इतिहास खुद को दोहराएगा?

देहरादून कोरोना संकट के बीच चार धाम में आदि शंकराचार्य की स्थापित परंपरा टूट सकती है। 400 साल में केवल चार बार ऐसा हुआ है, जब रावल की गैरमौजूदगी में केदारनाथ धाम के कपाट खुले। वहीं बदरीनाथ धाम के रावल केरल में फंसे हुए हैं। उनके आने और परंपरा का पालन करने में क्वारंटीन भी एक अड़चन है। चार धाम के कपाट खुलने की तारीख करीब है। ऐसे में क्या इस बार इतिहास खुद को दोहराने वाला है? चार धाम के कपाट खुलने से पहले विवाद खड़ा हो गया है। तीर्थ पुरोहित चार धाम में ऑनलाइन पूजा का विरोध कर रहे हैं। इस बीच राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए अहम इस यात्रा का टलना तय है। आध्यात्मिक मामले में बढ़ते विवाद को थामने के लिए कैबिनेट की बैठक में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने टिहरी राजपरिवार को मध्यस्थ बनाया है। बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की व्यवस्था या नई तारीख तय करने का अधिकार राजपरिवार को दिया गया है। ऑनलाइन पूजा और शंकराचार्य की परंपरा रावत कैबिनेट ने तय कर दिया कि टिहरी राजपरिवार वर्तमान रावल से पूजा अर्चना कराने के लिए तारीख को बदल सकता है। पूजा का अधिकार स्थानीय ब्राह्मण को भी दिया जा सकता है। केदारनाथ धाम में भी रावल के प्रतिनिधि के जरिए पूजा कराने का विकल्प सरकार ने खुला रखा है। नवगठित देवस्थानम बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और कमिश्नर गढ़वाल बयान का चार धाम तीर्थ पुरोहितों ने विरोध किया था। उन्होंने चार धाम मंदिरों में ऑनलाइन पूजा की बात कही है। पढ़ें: देवभूमि तीर्थ पुरोहित हकहकूक धारी महापंचायत ने इस बयान पर कहा कि सीईओ ने कहा है कि मंदिरों की पूजा ऑनलाइन की जा सकती है। इन विश्व प्रसिद्ध मंदिरों की पूजा अर्चना सदियों से आदि गुरु शंकराचार्य की परंपरा के अनुसार की जा रही है । महापंचायत के अनुसार ऑनलाइन पूजा संबंधी बयान आदि काल से चली आ रही परंपराओं के खिलाफ है। पढ़ें: लॉकडाउन में फंसे हैं बदरीनाथ-केदारनाथ के रावल असल में यह विवाद चार धामों में से दो धाम बदरीनाथ और केदारनाथ के प्रमुख रावलों के लॉकडाउन में दूसरे राज्यों में फंसे होने से पैदा हुआ है। केदारनाथ के प्रमुख रावल भीमाशंकर लिंग महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले में फंसे हैं। वहीं, बदरीनाथ के प्रमुख रावल ईश्वरी प्रसाद नम्बूदरी केरल के अपने गृह जिले में फंसे हैं। केदारनाथ के प्रमुख रावल भीमाशंकर लिंग को महाराष्ट्र सरकार सड़क मार्ग से केदारनाथ के लिए रवाना होने की अनुमति दे चुकी है। पढ़ें: भीमाशंकर लिंग शुक्रवार को केदारनाथ के लिए नांदेड़ से रवाना होंगे। यह जानकारी उन्होंने तीर्थाटन मंत्री को दी है । उन्होंने लॉकडाउन में सड़क मार्ग से केदारनाथ जाने की इजाजत देने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। केरल में फंसे बदरीनाथ के प्रमुख रावल ईश्वरी प्रसाद नम्बूदरी को बदरीनाथ लाने के लिए अनुमति देने के लिए उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने केरल के मुख्य सचिव और केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय को पत्र भेजा है। ताकि उन्हें भी उत्तराखंड आने की मंजूरी मिल सके। पढ़ें: दोनों प्रमुख रावल आ भी गए तो क्वारंटीन करना होगा अब चूंकि धामों के कपाट खुलने का समय बिलकुल करीब आ चुका है ऐसे में अगर ये दोनों प्रमुख रावल कपाटों के कहने से पूर्व भी इन धामों में आ गए तो भी इनको चौदह दिन के क्वारंटीन में रखना होगा। ऐसे में इनसे दोनों धामों के कपाटों के खोलने के दौरान की जाने वाली पूजाएं संपन्न नहीं कराई जा सकतीं। इसी कारण यह एक मसला पैदा हुआ है कि इन दोनों धामों केदारनाथ और बदरीनाथ के कपाट खुलने पर पूजा आखिर करेगा कौन? आदि शंकराचार्य की परंपरा के अनुसार इन दोनों धामों के रावलों की उपस्थिति इस दौरान जरूरी है । बदरीनाथ पर टिहरी राजपरिवार करेगा व्यवस्था बढ़ते विवाद के बीच कैबिनेट मंत्री और सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने बताया कि रावलों को लाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन इसमें पेच यह है कि दूसरे राज्य से आने पर सरकार को उन्हें 14 दिन के क्वारंटीन में रखना होगा। इससे आने का भी ज्यादा लाभ न मिलेगा। मंदिर समिति और शास्त्रों की व्यवस्था के अनुसार निर्णय लिया जाएगा। ऐसे में कपाट खोले जाने और नियमित पूजा-अर्चना के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी। ऐसे में बदरीनाथ धाम के लिए क्या व्यवस्था की जाए, इसके लिए टिहरी राजपरिवार से परामर्श लिया जा रहा है। उनकी ओर से जो व्यवस्था दी जाएगी, उसी के अनुरूप सरकार कदम उठाएगी। कोरोना वायरस: 400 साल में 4 बार केदारनाथ के रावल गैरहाजिर सरकारी प्रवक्ता ने यह भी बताया कि केदारनाथ धाम के करीब 400 साल के इतिहास में चार बार रावल की अनुपस्थिति में उनके प्रतिनिधि ने कपाट खुलने के वक्त पूजा-अर्चना की थी। इसका गहन अध्ययन किया गया है। इस बार ऐसा होने में कोई पेच नहीं आना चाहिए। कैबिनेट में लिए फैसले के अनुसार कोरोना संक्रमण को देखते हुए कपाट खुलने के वक्त आम लोगों को दर्शन की अनुमति नहीं दी जाएगी। सरकार के अनुसार बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने के लिए रावल के उपस्थित न होने पर मजबूरी में किसी ब्रह्मचारी सरोला ब्राह्मण से पूजा कराने का एक विकल्प है। इस व्यवस्था का जिक्र बाकायदा श्रीबदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के ऐक्ट में है। चूंकि अभी तक चार धाम देवस्थानम बोर्ड के कोई नियम नहीं बन सके हैं, ऐसे में फिलहाल मदन कौशिक के अनुसार श्रीबदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के एक्ट से ही यहां की व्यवस्थाएं संचालित होंगी। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर ऐक्ट 1939 में यह व्यवस्था 1939 के बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर ऐक्ट में वैकल्पिक व्यवस्था का उल्लेख है। मंदिर समिति के लम्बे समय तक पूर्व मुख्य कार्याधिकारी रहे जगत सिंह बिष्ट के अनुसार 1939 के इस ऐक्ट में रावल चैप्टर में लिखा है कि विशेष परिस्थिति में बदरीनाथ धाम में रावल उपलब्ध न रहने पर कोई सरोला ब्रह्मचारी ब्राह्मण वैकल्पिक तौर पर पूजा-अर्चना कर सकता है। उनके अनुसार 1776 में भी ऐसी स्थिति आई थी। 1776 में तत्कालीन रावल रामकृष्ण स्वामी का बदरीनाध धाम में आकस्मिक निधन हो गया था। तब गढ़वाल नरेश प्रदीप शाह ने डिमरी जाति के सरोला पंडित गोपाल डिमरी को पूजा के लिए नियुक्त किया था। पढ़ें: उत्तराखंड देवस्थानाम बोर्ड के सीईओ रविनाथ रमन के अनुसार श्री बदरीनाथ धाम की पूजा अर्चना के लिए टिहरी के राजा की ओर से दूसरे विकल्प की भी व्यवस्था है। चार धाम से जुड़े नौ अन्य मंदिर के कपाट भी चार धामों के लिए ही तय समय पर खुलते रहे हैं। इनमें बदरीनाथ परिसर में मौजूद लक्ष्मी मंदिर, नंदा देवी मंदिर, उर्वशी मंदिर, माता भूमि मंदिर, व्यास गुफा, गणेश गुफा, हनुमान मंदिर और भविष्य बद्री मंदिर शामिल हैं। यमुनोत्री-गंगोत्री के कपाट खुलने में अड़चन नहीं इनके अलावा दो अन्य धामों यमुनोत्री और गंगोत्री धामों के खुलने में इसलिए कोई अड़चन नहीं है, क्योंकि इनके मुख्य पुजारी स्थानीय पंडे ही हैं। वे हर प्रकार से कपाट खोले जाने के लिए तैयार हैं। जहां तक कपाट खोलने के लिए धामों की तैयारियों का प्रश्न है तो बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तारीख करीब होने के चलते शुक्रवार से मंदिर के कर्मचारियों ने प‌रिक्रमा स्थल से बर्फ हटाने का काम शुरू कर दिया है। इस वक्त मंदिर परिसर में लगभग चार फीट बर्फ जमी हुई है। सीमा सड़क संगठन (BRO) की ओर से बदरीनाथ हाईवे को भी देश के अंतिम गांव माणा तक सुचारू कर दिया गया है। बदरीनाथ धाम में बर्फबारी से पेयजल और बिजली की लाइनों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। लॉकडाउन के कारण स्थानीय प्रशासन ने कपाट खुलने के मौके पर मंदिर परिसर में महज 40 लोगों को ही जाने की अनुमति दी है। यात्रा से पहले धाम में सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त कर दी जाएं, इसकी कोशिश जारी है। केदारनाथ मार्ग में एक किलोमीटर तक अभी बर्फ साफ होनी है। इस काम की रफ्तार बढ़ा दी गई है।


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