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देहरादून उत्तराखंड में गैरसैंण के पास बेनीताल बुग्याल पर निजी कब्जा होने की अटकलों को प्रशासन ने खारिज किया है। राज्य आंदोलनकारी मुकुंद कृष्ण दास ने वीडियो जारी कर कहा कि यहां राजीव सरीन नाम के व्यक्ति ने निजी संपत्ति होने का बोर्ड लगा दिया है। उन्होंने कहा कि बुग्याल सरकारी संपत्ति होते हैं। इनकी जमीन वन विभाग के अधीन होती है। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया। कर्णप्रयाग के एसडीएम वैभव गुप्ता ने कहा कि राजस्व उपनिरीक्षक कोटी देवेंद्र कंडारी के नेतृत्व में टीम मौके पर भेजी गई है। विवादास्पद बताई जा रही भूमि राजस्व रिकॉर्ड में राजीव सरीन और बंधुओं की ही है। सरकारी भूमि पर कोई भी निजी बोर्ड या तारबाड़ नहीं की गई है। वहीं, क्षेत्रीय राजनीतिक दल यूकेडी ने इसे मुद्दा बना लिया है। यूकेडी नेता उमेश खंडूड़ी, पार्टी नेता केएल शाह अन्य कार्यकर्ताओं के साथ यहां पहुंचे। उमेश खंडूड़ी का कहना है कि बेनीताल बुग्याल आसपास की ग्रामसभाओं की भूमि है। राजस्व अधिकारियों ने बताया है कि आजादी से पहले बेनीताल बुग्याल की भूमि पर टी स्टेट थी। 2015 में सुप्रीम कोर्ट में भूमि विवाद पर निर्णय आने के बाद 697.484 हेक्टेयर भूमि उत्तराखंड सरकार के नाम दर्ज हुई। सरीन बंधुओं को मुआवजा दिया गया। इसके अलावा 21.186 हेक्टेयर भूमि सरीन बंधुओं के नाम दर्ज हुई। इसी जमीन पर सरीन बंधुओं ने निजी संपति का बोर्ड लगाया था। राज्य में भू-कानून बनाने को हवा बुग्याल को लेकर उठे बवाल के बीच उत्तराखंड में चल रहे भू-कानून अभियान को हवा मिलने लगी है। राजनीतिक दल यूकेडी का कहना है कि औने-पौने दामों पर जमीनों की खरीद फरोख्त से आलीशान होटलों और कोठियों का निर्माण होने लगा है। चुनाव से ठीक पूर्व भू-कानून की मांग को लेकर सभी राजनीतिक दल इसके सुर में सुर मिला रहे हैं। वहीं, राज्य में कृषि भूमि भी कम हो रही है। राज्य बनने के समय 9 नवंबर 2000 को राज्य में 77,6191 हेक्टेयर कृषि भूमि उपलब्ध थी, जो अप्रैल 2011 में घटकर 72,3164 हेक्टेयर रह गई।
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