अपने एक दिवसीय उत्तरकाशी दौरे में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान यह घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि सभी पक्षों से विचार विमर्श के उपरांत उनकी सरकार बोर्ड में सकारात्मक परिवर्तन या संशोधन के पक्ष में है ।
उन्होने कहा कि यह समिति अधिनियम के विधिक पहलुओं का आकलन कर यह सुनिश्चित करेगी कि इससे चारधाम यात्रा से जुडे हक—हकूकधारियों, पुजारियों तथा अन्य हितधारकों के पारंपरिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव न पडे ।
धामी ने कहा, ‘‘ समिति की संस्तुति के आधार पर बोर्ड की व्यवस्था के संदर्भ में अग्रिम निर्णय लिया जाएगा।’’ उन्होंने कहा कि डेढ साल पहले इस अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद से धामों के तीर्थ पुरोहित देवस्थानम बोर्ड को लेकर लगातार अपनी बात कहते आ रहे हैं ।
धामी ने कहा कि अधिनियम के तहत रावल, पंडे, हक—हकूकधारी तथा स्थानीय हितधारकों के पारंपरिक, धार्मिक एवं आर्थिक अधिकारों को सुरक्षित रखने की बात कहे जाने के बावजूद इन पवित्र धामों के कतिपय हितधारकों के मन में संशय उत्पन्न हो रहा है कि सरकार कहीं धामों पर अधिकार तो नहीं करने जा रही है ।
उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा इन पर अधिकार करने की नहीं बल्कि वहां बिजली, पानी, आवास, साफ—सफाई और यात्रा को व्यवस्थित ढंग से संचालित करने की है ।
चारों हिमालयी धामों, बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, के तीर्थ पुरोहित लंबे समय से बोर्ड को भंग किए जाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं और उनका मानना है कि बोर्ड का गठन उनके अधिकारों का हनन है ।
देवस्थानम अधिनियम पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सरकार के कार्यकाल में पारित हुआ था जिसके तहत चार धाम सहित प्रदेश के 51 मंदिरों के प्रबंधन के लिए बोर्ड का गठन किया गया ।
मार्च में पद संभालने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने घोषणा की थी कि चारों धामों को देवस्थानम बोर्ड के दायरे से बाहर किया जाएगा और बोर्ड के गठन पर भी पुनर्विचार किया जाएगा । हांलांकि, वायदे को पूरा करने से पहले ही रावत की पद से विदाई हो गई ।
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