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देहरादून लॉकडाउन के बाद पूरे देश में बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन क्लासेस से हो रही हैं। उत्तराखंड के छोटे बच्चों के लिए बोझ बन गई है। यहां के कई इलाके ऐसे हैं जहां मोबाइल का नेटवर्क नहीं आता और बच्चों को पढ़ाई के लिए कई-कई किलोमीटर दूर पहाड़ों पर चढ़कर और उतरकर नेटवर्क ढूंढना पड़ता है। जहां नेटवर्क मिलता है वे वहीं बैठकर पढ़ने लगते हैं। उत्तराखंड के दस जिले पहाड़ पर हैं और तीन जिले मैदानी हैं। अल्मोड़ा के घनश्याम सिंह ने बताया कि उनके तीन बच्चे हैं, तीनों स्कूल जाते हैं। उनकी ऑनलाइन क्लासेस चल रही हैं। उनके गांव में नेटवर्क नहीं आता इसलिए बच्चे मोबाइल फोन लेकर घने जंगल रास्ते नेटवर्क ढूंढने जाते हैं। कई बार तो वह बच्चों के साथ जाते हैं लेकिन हर समय यह संभव नहीं है। पूरा दिन घर से दूर बीतता है समय घनश्याम ने बताया कि घर में सिर्फ एक ही स्मार्टफोन है। तीनों बच्चों को क्लासेस के लिए अलग-अलग समय पर मोबाइल फोन देखने को देते हैं। बच्चों का पूरा समय मोबाइल के साथ और घर के बाहर ही बीत जाता है। दूसरों के घर जाकर करते हैं पढ़ाई पिथौरागढ़ के झूलागढ़ के रहने वाले कुछ छात्रों ने बताया कि उनका पूरा दिन दूसरों के घर में ही बीत जाता है। जिनके घरों में ब्रॉडबैंड लगा है वे उनके घर पढ़ाई के लिए जाते हैं। कुछ ने नेपाली सिम खरीदे हैं ताकि उन्हें वहां का नेटवर्क मिल सके। उन लोगों को इन सिम को रिचार्ज करवाने के लिए काफी रुपये खर्च करने पड़ते हैं। नेपाल के पते पर खरीद रहे सिम यहां के निवासी सुरेंद्र कुमार ने बताया कि उन्होंने बच्चों की पढ़ाई के लिए नेपाल के पते पर सिम खरीदा है। इस सिम को रीचार्ज कराने के लिए ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ते हैं। एक दिन का एक जीबी जेटा 45 रुपये का रीचार्ज होता है। लॉकडाउन में जहां इनकम बंद हो गई है वहीं इंटरनेट का खर्चा बढ़ गया है। इनकम हुई बंद, खर्च बढ़ा दुंडू ताला चरमा और पिथौरागढ़ के मालन में 345 ऐसे छात्र हैं जो इंटरनेट नेटवर्क न आने की परेशानी से जूझ रहे हैं। उन्हें पढ़ाई के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ता है। बार-बार नेटवर्क की समस्या होती है तो क्लास डिस्टर्ब होती है। बच्चों को घर से बाहर दूर-दूर तक क्लास अटेंड करने जाना पड़ता है।
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