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देहरादून उत्तराखंड उन राज्यों में से एक है जो के खिलाफ कानून बनाने पर विचार कर रहा है। अब राज्य सरकार उस योजना को भी खत्म कर सकती है जिसमें अंतरधर्म में शादी करने वाले जोड़ों को 50 हजार रुपये आर्थिक सहायता दी जाती थी। राज्य सरकार विचार कर रही है कि अंतर धर्म में विवाह करने वालों को दिए जाने वाले आर्थिक लाभ की योजना को खत्म किया जाए। समाज कल्याण विभाग ने प्रदेश में इस योजना के तहत लाभार्थियों की एक सूची जारी की। सूची में एक जिले टिहरी में ही अकेले 18 जोड़ों को योजना का लाभ दिया गया। 2018 में आया था फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल उत्तराखंड ने 2018 में ही 'फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल' पारित किया था। इसके तहत रुपयों के दम पर या किसी का जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने का दोषी पाए जाने पर दो साल तक की जेल का प्रावधान है। इसके साथ ही उत्तराखंड, ओडिशा, एमपी, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में शामिल हो गया, जहां दूसरे रूप में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू है। योजना से मिल रहा लव जिहाद को बढ़ावा? हाल ही में, जब समाज कल्याण विभाग ने अंतर-धार्मिक विवाह योजना के तहत लाभार्थियों की एक सूची जारी की। इस सूची के बाद समाज के एक वर्ग ने इस पर सवाल उठाए। कहा गया कि सरकार इस तरह की कल्याणकारी योजना के जरिए लव जिहाद को बढ़ावा दे रही है। सीएम टीएस रावत ने मामले की जांच के आदेश दिए। सूत्रों ने कहा कि राज्य प्रशासन अब इस मुद्दे पर गंभीर है और अंतर-धार्मिक विवाह के लिए दी जाने वाली वित्तीय सहायता को खत्म कर सकता है। 'शून्य और निष्क्रिय है योजना' राज्य के शहरी विकास मंत्री और सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने टीओआई को बताया कि यह योजना कांग्रेस सरकार के समय में लाई गई थी जब उत्तराखंड 1976 में उत्तर प्रदेश का हिस्सा था। फिर, 2014 में सत्ता में आने पर कांग्रेस सरकार ने इसे जारी रखा। अंतर-धर्म विवाह के लिए 10,000 रुपये से 50,000 रुपये तक की राशि दी जाती है। हालांकि, जब हमने अपना उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन ऐक्ट 2018 विधानसभा सभा से पास किया तो यह योजना शून्य और निष्क्रिय हो गई। उन्होंने कहा, 'इस योजना को खत्म कर दिया गया है, लेकिन अगर अभी भी कुछ भ्रम है, तो इसे जल्द ही सुलझा लिया जाएगा।' कांग्रेस ने बीजेपी पर लगाया आरोप विपक्षी कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि बीजेपी लोगों को फिर से गुमराह कर रही है। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा, 'राज्य के गठन से पहले ही यह योजना अस्तित्व में थी और इसे अभी खत्म नहीं किया गया है और यह अभी भी जारी है। दूसरी बात, भले ही इस योजना को खत्म कर दिया गया हो, लेकिन दो लोगों को अलग-अलग धर्मों से शादी करने से कैसे रोका जा सकता है, क्योंकि यह हमारे संविधान द्वारा प्रदान किया गया अधिकार है?
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