"प्राण"(आत्मा की छाया) की उत्पत्ति !!!
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं,
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥
यह आत्मा न कटनेवाला, न जलनेवाला, न गलनेवाला और न सूखनेवाला है।
आपस में एक दूसरे का नाश कर देने वाले पंचभूत इस आत्मा का नाश करने के लिए समर्थ नहीं है।
इसलिए यह नित्य है। नित्य होने से सर्वगत है। सर्वव्यापी होने से स्थाणु (ठूँठ) की भाँति स्थिर है।
स्थिर होने से यह आत्मा अचल है और इसीलिए सनातन है।
अर्थात किसी कारण से नया उत्पन्न नहीं हुआ है। पुराना है।
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं,
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥
यह आत्मा न कटनेवाला, न जलनेवाला, न गलनेवाला और न सूखनेवाला है।
आपस में एक दूसरे का नाश कर देने वाले पंचभूत इस आत्मा का नाश करने के लिए समर्थ नहीं है।
इसलिए यह नित्य है। नित्य होने से सर्वगत है। सर्वव्यापी होने से स्थाणु (ठूँठ) की भाँति स्थिर है।
स्थिर होने से यह आत्मा अचल है और इसीलिए सनातन है।
अर्थात किसी कारण से नया उत्पन्न नहीं हुआ है। पुराना है।
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