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नाम उजागर न करने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अभयारण्य में नियमों के उल्लंघन के मामले में राज्य सरकार को सौंपी जाने वाली यह चौथी रिपोर्ट है। उन्होंने बताया कि इसमें भी पुरानी रिपोर्टों की तरह अभयारण्य की पाखरो और मोरघटटी जोन में पेड़ों के अवैध कटान और अवैध निर्माण में मिलीभगत के लिए वन अधिकारियों को अभ्यारोपित किया गया है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश के बाद अतिरिक्त मुख्य वन संरक्षक कपिल जोशी ने यह जांच की है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने पहले दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर कॉर्बेट बाघ अभयारण्य में हुए नियमों के उल्लंघन की जांच की थी और अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की थी जिनकी कथित मिलीभगत से पेड़ों का अवैध कटान और अवैध निर्माण हुआ।
मामले में दूसरी जांच प्रदेश के वन विभाग के पूर्व प्रमुख राजीव भरतरी ने जबकि तीसरी जांच भारत सरकार के वन महानिदेशक के इंटीग्रेटेड क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा की गयी। सभी जांच समितियों का निष्कर्ष मिलता-जुलता है लेकिन अधिकारियों के खिलाफ कोई निर्णायक दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गयी जिनकी कथित मिलीभगत से उल्लंघन हुए।
जांच समितियों द्वारा नियमों के उल्लंघन के दोषी ठहराए गए अधिकारियों में पूर्व मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जे एस सुहाग और कालागढ़ के पूर्व प्रभागीय वन अधिकारी किशन चंद शामिल हैं।
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