हरेंद्र बताते हैं कि एक बार मेरे पिता का ट्रांसफर हजारीबाग हो गया. वहां सभी लोग हॉकी खेलते थे, तो मैंने भी उनलोगों के साथ हॉकी खेलना शुरू कर दिया. इसके बाद उन्हें पढ़ने के लिए दिल्ली भेज दिया गया.
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