मंगलवार, 23 जून 2015

कुछ तेरा ना मेरा मुसाफिर...

वहां कौन है तेरा
मुसाफिर जाएगा कहाँ
दम ले ले घड़ी भर
ये छइयां पाएगा कहाँ
बीत गए दिन
प्यार के पल-छीन
सपना बनी ये रातें
भूल गए वो
तू भी भुला दे
प्यार की वो मुलाकातें
सब दूर आंधेरा
मुसाफिर...
कोई भी तेरी
राह ने देखे
नैन बिछाए न कोई
दर्द से तेरे
कोई ना तड़पा
आँख किसी की ना रोई
कहे किसको तू मेरा
मुसाफिर...
कहते हैं ज्ञानी
दुनिया है फानी
पानी पे लिखी लिखाई
है सबकी देखी
है सबकी जानी
हाथ किसी के ना आनी

मुसाफिर...
कुछ तेरा ना मेरा

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