अर्जुन सिंह रावत, देहरादून: जंग लड़ना किसी के लिए भी आसान नहीं होता। एक जंग जेहन पर कई साल तक हावी रहती है। भारत में कई ऐसे शूरवीर हुए, जिन्होंने अपने जीवन काल में एक नहीं तीन-तीन लड़ाइयां लड़ीं। वो चीन से 1962 का युद्ध हो, पाकिस्तान से 1965 की लड़ाई या फिर बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ा गया 1971 का संग्राम। हर जंग अपने नायकों के वीरता, साहस और शौर्य की कहानियों से भरी पड़ी है। पहाड़ अपने ऐसे ही एक सपूत के निधन पर आज गमगीन है। भारत मां के उस बेटे ने तीनों जंग में हिस्सा लिया था। उस 'नायक' ने जंग के मोर्चे पर भी लड़ाई लड़ी और सामाजिक जीवन में भी। 86 साल के नायक बलवंत सिंह बिष्ट का देहरादून में शनिवार को निधन हो गया। वह भारतीय सेना के उन वीर सैनिकों में से थे जिनके कंधे पर 1962, 65 और 71 की जंग लड़ने का तमगा चमकता था। मूल रूप से चमोली के दूरस्थ गांव घेस के रहने वाले बलवंत सिंह बिष्ट साल 1959 में 4 गढ़वाल राइफल्स में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे।
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