"मंगल-मूरति मारूत-नंदन।
सकल-अमंगल-मूल-निकंदन॥
पवनतनय संतन-हितकारी।
ह्रदय बिराजत अवध-बिहारी॥
मातु-पिता,गुरू,गनपति,सारद।
सिवा-समेत संभु,सुक,नारद॥
चरन बंदि बिनवौं सब काहू।
देहु रामपद-नेह-निबाहू॥
बंदौं राम-लखन-बैदेही।
जे तुलसीके परम सनेही॥
ॐ हं हनुमतये नमः॥
सकल-अमंगल-मूल-निकंदन॥
पवनतनय संतन-हितकारी।
ह्रदय बिराजत अवध-बिहारी॥
मातु-पिता,गुरू,गनपति,सारद।
सिवा-समेत संभु,सुक,नारद॥
चरन बंदि बिनवौं सब काहू।
देहु रामपद-नेह-निबाहू॥
बंदौं राम-लखन-बैदेही।
जे तुलसीके परम सनेही॥
ॐ हं हनुमतये नमः॥
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